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स्पष्ट और सर्वांग परिपूर्ण है । मूलपर उसकी टीकामें टीकाकारने पूरा प्रकाश डाला है, जिसका पुरा परिचय तो उस टीका देखनेसे ही हो सकेगा ।
पाठकोंसे हमारा अनुरोध है कि वे योगविंशिका की टी. काको पढकर टीकाकारकी बहुथुतगामिनी बुद्धि और अनेकशraदोहनका थोडे ही में आस्वाद लेवें ।
ग्रन्थकर्त्ता --- ऊपर जिस वृत्तिका परिचय कराया गया है, उसके रचयिता जैन विद्वान् उपाध्याय यशोविजयजी है । योगविशिकाकी टीकाके कर्ता भी वे ही हैं । वृत्तिके मूलरूप योगसूत्रके प्रणेता वैदिक विद्वान् महर्षि पतञ्जलि हैं और मूल योगविंशिका रचयिता जैन विद्वान् आचार्य हरिभद्र हैं । इस प्रकार यहाँ ग्रन्थकर्तारूपसे उक्त तीन व्यक्तिओंका परिचय कराना आवश्यक है ।
( १ ) पतञ्जलि --- इनके जन्मस्थान, माता, पिता, समय आदिके विषय में विद्वानोंने बहुत ऊहापोह किया हैं पर अभीतक यही निश्चित नहीं हुआ कि योगसूत्रकार पतञ्जलि, पाणिनीय व्याकरणसूत्र पर भाष्य रचनेवाले. महाभाष्यकारनामसे प्रसिद्ध पतञ्जलिसे जुदा थे या दोनों एक ही थे । महाभाष्यकार और योगसूत्रकार पतञ्जलिकी भिन्नता या एकताके सम्बन्ध में आजतक कीगई. खोजोंसे अधिक विचार प्रदर्शित करनेके लिए न तो हमने पर्याप्त अवलोकन ही किया है और 'न उसकी अधिक गवेषणा करनेके लिए अभी हमें समय ही प्राप्त है, इसलिए इस विषयके जिज्ञासुओंके लिए हम सरल भावसे अन्य विद्वानोंकी गवेषणाओंको देखनेको ही सिफारिश करते हैं
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