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[६५] आचार्यने अन्तमें चार प्रकारके योगियोंका वर्णनकरके योगशास्त्रके अधिकारी कौन हो सकते हैं ? यह भी बतला दिया है । यही योगदृष्टिसमुच्चयकी बहुत संक्षिप्त वस्तु है ।
योगविंशिकामें आध्यात्मिक विकासकी प्रारंभिक अवस्थाका वर्णन नहीं है, किन्तु उसकी पुष्ट अवस्थाओंका ही वर्णन है। ___ इसीसे उसमें मुख्यतया योगके अधिकारी त्यागी ही माने गये हैं । प्रस्तुत ग्रन्थमें त्यागी गृहस्थ और साधुकी
आवश्यक-क्रियाको ही योगरूप बतलाकर उसके द्वारा आध्यात्मिक विकासको क्रमिक वृद्धिका वर्णन किया है । और उस आवश्यक-क्रियाके द्वारा योगको पाँच भूमिओं में विभाजित किया है। ये पाँच भूमिकायें उसमें स्थान, शब्द, अर्थ, सालंवन और निरालंबन नामसे प्रसिद्ध हैं । इन पाँच भूमिकाओंमें कर्मयोग और ज्ञानयोगकी घटना करते हुए आचायेने पहली दो भूमिकाओंको कर्मयोग और पिछली तीन भूमिकाओंको ज्ञानयोग कहा है इसके सिवाय प्रत्येक भूमिकामें इच्छा, वृत्ति, स्थैर्य और सिद्धिरूपसे आध्यात्मिक विकासके तरतम भावका प्रदर्शन कराया है। और उस प्रत्येक भूमिका तथा इच्छा, प्रवृत्ति आदि अवान्तर स्थितिका लक्षण बहुत स्पष्टतया वर्णन किया है। इस प्रकार उक्त
१ योगविंशिका गा० ५, ६ ॥