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________________ . [५३] कारित अनुमोदित, प्रकाशावरण, सोपक्रम निरूपक्रम, वज्रसंसविचारं प्रथमम् " भाष्य " अविचारं द्वितीयम्" तत्त्वा-श्र ६-४४ । योगसूत्रमें ये शब्द इस प्रकार आये हैं..-"तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः " " स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितकी" "एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता" १-४२, ४३, ४४ । ३ जैनशास्त्रमें मुनिसम्बन्धी पाँच यमोंके लिये यह शब्द बहुत ही प्रसिद्ध है। " सर्वतो विरतिर्महाव्रतमिति " तत्त्वार्थ अ०७-२ भाष्य । यही शब्द उसी अर्थमें योगसूत्र २-३१ में है। ४ ये शब्द जिस भावके लिये योगसूत्र २-३१ में प्रयुक्त हैं, उसी भावमें जैनशास्र में भी आते हैं, अन्तर सिर्फ इतना है कि जैनप्रन्थों में अनुमोदितके स्थानमें बहुधा अनुमतशब्द प्रयुक्त होता है । देखो-तत्त्वार्थ, अ. ६-६। ५ यह शब्द योगसूत्र २-५२ तथा ३-४३ में है। इसके स्थानमें जैनशास्त्र में 'ज्ञानावरण' शब्द प्रसिद्ध है। देखो तत्त्वार्थ, अ. ६-११ आदि । ६ ये शब्द योगसूत्र ३-२२ में हैं। जैन कर्मविषयक साहि.त्यमें ये शब्द बहुत प्रसिद्ध हैं। तत्त्वार्थमें भी इनका प्रयोग हुआ है, देखो-अ. २-५२ भाष्य । ७ यह शब्द योगसूत्र (३-४६) में प्रयुक्त है। इसके स्थानमें जैन ग्रन्थोंमें 'वञऋषभनाराचसंहनन' ऐसा शब्द मिलता है । देखो तत्त्वार्थ (अ०८-१२) भाष्य ।
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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