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________________ [ ३४ ] उन्होंने हरिभद्रसूरिकृत योगविंशिका तथा पोडशकपर टीका लिख कर प्राचीन गूढ तत्त्वोंका स्पष्ट उद्घाटन भी किया है । इतना ही करके वे सन्तुष्ट नहीं हुए, उन्होंने महर्षि - पतञ्जलिकृत योगसूत्रों के उपर एक छोटीसी वृत्ति भी लिखी है । यह वृत्ति जैन प्रक्रियाके अनुसार लिखी हुई है, इसलिये उसमें यथासंभव योगदर्शनकी भित्ति-स्वरूप सांख्यप्रक्रियाका जैनप्रक्रिया के साथ मिलान भी किया है, और अनेक स्थलोंमें उसका सयुक्तिक प्रतिवाद भी किया है । उपाध्यायजीने अपनी विवेचना में जो मध्यस्थता, गुणग्राहकता, सूक्ष्म समन्वयशक्ति और स्पष्टभापिता दिखाई है ऐसी दूसरे श्राचायों में बहुत कम नजर आती है । A एक योगसार नामक ग्रन्थ भी वेताम्बर साहित्य में है । कर्ताका उल्लेख उसमें नहीं है, पर उसके दृष्टान्त आदि वर्णनसे जान पडता है कि हेमचन्द्राचार्य के योगशास्त्रके १. इसके लिये उनका ज्ञानसार जो उन्होंने अंतिम जीवनमें लिखा मालूम होता है वह ध्यानपूर्वक देखना चाहिये । शास्त्रवार्ता समुञ्चय की उनकी टीका ( पृ० १०) भी देखनी आवश्यक है। २. इसके लिये उनके शास्त्रवातसमुच्चयादि ग्रन्थ ध्यानपूर्वक देखने चाहिये, और खास कर उनकी पातञ्जल सूत्रवृत्ति मननपूर्वक देखनेसे हमारा कथन अक्षरशः विश्वसनीय मालूम पडेगा ।
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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