________________
परिचय.
पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत पुस्तक उपस्थित करते हुए इसका संक्षेपमें परिचय कराना जरूरी है। शुरूमें प्रस्तावना रूपसे योगदर्शन पर एक विस्तृत निबन्ध दे दिया गया है जिसमें योग तथा योग-सम्बन्धी साहित्य आदिसे सम्बन्ध रखनेवाली अनेक बातों पर सप्रमाण विचार किया गया है। तत्पश्चात् इस पुस्तकमें मुख्यतया योगसूत्रवृत्ति और सटीक योगविंशिका इन दो ग्रन्थोंका संग्रह है, तथा साथमें उनका हिंदी सार भी दिया हुआ है । अतएव उक्त दोनों ग्रन्थोंका, उनके कर्ता आदिका तथा हिंदी सारका कुछ परिचय कराना आवश्यक है, जिससे वाचकोंको यह मालुम हो जाय कि ये ग्रन्थ कितने महत्त्वपूर्ण हैं, और इनके कर्ताका स्थान कितना उच्च है। साथ ही यह भी विदित हो जाय कि मूल ग्रन्थोंके साथ उनका हिंदी सार देनेसे हमारा क्या अभिप्राय है । आशा है इस परिचयको ध्यानपूर्वक पढनेसे वाचकोंकी रुचि उक्त दो ग्रन्थोंकी ओर विशेष रूपसे उत्तेजित होगी, ग्रन्थकर्ताओंके प्रति बहुमान पैदा होगा। और हिंदी सार देख कर उससे मूल ग्रन्थके भावको समझ लेनेकी उचित आकांक्षा पैदा होगी।
(१) योगसूत्रवृत्ति-यह वृत्ति योगसूत्रोंकी एक छोटी सी टिप्पणिरूप व्याख्या है। योगसूत्रोंमें सांगोपांग योगप्रक्रिया है, जो सांख्य-सिद्धान्तके आधार पर लीखी गई है। उन सूत्रोंके ऊपर सबसे प्राचीन और सबसे अधिक महत्वकी टीका महर्षि व्यासका भाष्य है। यह प्रसन्न गंभीर और विस्तृत भाष्य सांख्य सिद्धान्तके अनुसार ही रचा गया है, पर वृत्ति जैन प्रक्रियाके अनुसार रची गई है। अतएव जिस जिस