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________________ [१८] यह अनुमान करना सहज है कि उस जमानेके लोगोंका झुकाव आध्यात्मिक अवश्य था । यद्यपि ऋग्वेद में योगशब्द वह पुरुष अधिकतर है । सारे भूत उसके एक पाद मात्र हैंउसके अमर तीन पाद स्वर्गमें हैं । ३ । क सूक्क मं. १० सू. १२१ ऋग्वेदः हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥१॥ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिपं यस्य देवाः । यस्य च्छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥२॥ भाषांतरः —— पहले हिरण्यगर्भ था । वही एक भूत मात्रका पति बना था | उसने पृथ्वी और इस आकाशको धारण किया। किस देवको हम हविसे पूजें १ । १ । जो आत्मा और बलको ? देनेवाला है | जिसका विश्व है। जिसके शासनकी देव उपासना करते हैं। अमृत और मृत्यु जिसकी छाया है । किस देवको हम हविसे पूजें ? । २। ऋग्वेद मं. १० -१२६-६ तथा ७- को श्रद्धा वेद क इह प्रवोचत् कुत आा जाता कुत इयं विसृष्टि: ।' अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आ वभूवं ॥ इयं विसृष्टिर्यत आ वभूव यदि वा दधे यदि वा न | यो अस्याध्यक्ष परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ||
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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