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ध्यात्मिक जीवनकी परिणाम सुन्दरता उपर ही किया गया है । अत एव जो विदेशीय विद्वान् श्रर्यजातिका लक्षण स्थूलशरीर, उसके डीलडोल, व्यापार-व्यवसाय, भाषा, आदिमें देखते हैं वे एकदेशीय मात्र हैं। खेतीबारी, जहाजखेना, पशुओंको चरांना आदि जो जो अर्थ आर्य शब्दसे निकाले गये हैं' वे श्रार्यजातिके असाधारण लक्षण नहीं हैं | आर्यजातिका असाधारण लक्षण परलोकमात्रकी कल्पना भी नहीं है क्यों कि उसकी दृष्टिमें वह लोक भी त्याज्य है । उसका सच्चा और अन्तरंग लक्षण स्थूल जगके उसपार वर्तमान परमात्मतत्त्वकी एकाग्रबुद्धिसे उपासना करना यही है । इस सर्वव्यापक उद्देश्यके कारण आर्यजाति surat सब जातियोंसे श्रेष्ठ समझती आई है ।
ज्ञान और योगका संबन्ध तथा योगका दरजा -- व्यवहार हो या परमार्थ, किसी भी विषयका ज्ञान तभी परिपक्क समझा जा सकता है जब कि ज्ञानानुसार चरण किया जाय । असलमें यह आचरण ही योग है ।
Biographies of Words & the Home of the Aryans by Max Muller page 50 | २ ते तं भुक्तत्रा स्वर्गलो.कं, विशालं क्षीणे पुण्ये मृत्युलोकं विशन्ति । एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते || गोता ० ६ श्लोक २१ ॥ ३ देखो Apte's Sanskrit to English Dictionary.