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________________ [१११] जाने जाते हैं। क्योंकि केवलज्ञानमें एक ऐसी शक्ति है जिससे वह शब्द आदि विषयोंको सदा ही जान लेता है। . सूत्र २३-उन्नीससे तेईसतकके पाँच सूत्रोंमें सूत्रकारने जो कुछ चर्चा की है उससे आत्माके विषयमें सांख्यसिद्धान्तसम्मत तीन बातें मुख्यतया मालूम होती हैं। वे ये हैं.(१) चैतन्यकी स्वप्रकाशता । (२) जो चैतन्य अर्थात् चिति-शक्ति है वही चेतन है अर्थात् चिति-शक्ति स्वयं स्वतंत्र है। वह किसीका अंश नहीं है और उसके भी कोई अंश नहीं हैं। अतएव वह निर्गुण है। (३) चिति-शक्तिं सर्वथा कूटस्थ होनेसे निर्लेप है। इन बातोंके विषयमें जैन मन्तव्यके अनुसार मतभेद दिखाते हुए उपाध्यायजी अन्तमें कहते हैं कि ये बातें किसी नयकी अपेक्षासे मान्य की जा सकती हैं सर्वथा नहीं। उक्त बातोंके विषयमें मतभेद क्रमशः इस प्रकार है. (१) चैतन्य स्वप्रकाश भी है और परप्रकाश भी। उसकी स्वप्रकाशता अग्निके प्रकाशके समान अन्य पदार्थके संयोगके सिवाय ही प्रत्येक प्राणिको अनुभव-सिद्ध है। चैतन्यकी परप्रकाशता आवरणदशामें विषयके सम्बंधके अधीन है और अनावरण-दशामें स्वाभाविक है । (२) चैतन्य यह शक्ति (गुण ) अर्थात् अन्य मूल तत्त्वका अंश है, वह अन्य तत्त्व चेतन या आत्मा है ।
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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