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________________ (८) लिखनेकी अभी हमारी तैयारी नहीं है, अलबत्ते यह हमारा खयाल हुआ है कि उनके जीवन पर पूरा प्रकाश डालनेके वास्ते जैसा चाहिए वैसा उनके ग्रन्थोंका गहरा अवलोकन अभीतक किसीने नहीं किया है वैसा अवलोकन करके निश्चित सामग्रीके आधार पर विशेष लिखनेकी हमारी हार्दिक इच्छा है। परंतु ऐसा सुयोग कब आवेगा यह कहा नहीं जा सकता। अंतएव अभीतकके उनके ग्रन्थोंके अवलोकनसे उत्पन्न हुए भावको सिर्फ एक, दो वाक्योंमें जना देना ही समुचित है। जैन आगमों पर सबसे पहले संस्कृतमें टीका लिखनेवाले, भारतीय समग्र दर्शनोंका सबसे पहले वर्णन करनेवाले, जैन शास्त्रके मूल सिद्धान्त अनेकान्तपर तार्किक रीतिसे व्यवस्थित रूपमें लिखनेवाले और जैन प्रक्रियाके अनुसार योगविषय पर 'नई रीतिसे लिखनेवाले ये ही हरिभद्र हैं। इनकी प्रतिभाने विविध विषयके जो अनेक ग्रन्थ उत्पन्न किये हैं उनसे केवल जैन साहित्यका ही नहीं किन्तु भारतीय संस्कृत, प्राकृत साहित्यका मुख उज्ज्वल है। १ यह कथन उपलब्ध ग्रन्थोंकी अपेक्षास समझना अन्यथा हरिभद्रसूरिके पहले भी योगविषय पर लिखनेवाले विशिष्ट जैनाचार्य हुए हैं, जिनके अनेक वाक्योंका अवतरण देते हुए हरिभद्रसूरिने योगदृष्टि समुच्चयकी टीकामें योगाचार्य' इस प्रतिष्ठासूचक नामसे उल्लेख किया है. इसके लिए देखो यो० स० श्लो० १४, १९, २२, ३५ आदिकी टीका. ____ अवतरण वाक्योंसे साफ जान पडता है कि 'योगाचार्य जैनाचार्य ही थे। यह नहीं कहा जा सकता है कि वे श्वेताम्बर थे या दिगम्बर । उनका असली नाम क्या होगा सो भी मालम नहीं, इसके लिए विद्वानोंको खोज करनी चाहिए । सम्भव है उनके किसी ग्रन्थकी उपलब्धिसे या अन्यत्र उद्धत विशेष प्रमाणसे अधिक बातोंका पता चले.'।
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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