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________________ ८७७ उकोसियाठिई होइ अन्तोमुडुत्त जहविया १८] [पावरशिजाण दुह पि वेगिज तहेवय अन्तराएयकम्मं मिठिईए साविया हिया २०] [उदहौसरिस मामाचं सत्तरं कोडिकोडौषो मोहणिज्जस्म लक्कोसाअन्तीमुहुत्त जहबिया २१] [तित्तीससागरोवम उक्कोसेणवियाहिया ठिईओ पाउकम्मम्मअन्तीमुहुतं * जहसिया २२] [उदही सरिसनामाणं वौसई कोडिकोडिनो नामगोयाण उक्कोसा अट्ठ मुहुत्ता जहसिया २३] एतासां गाथानां व्याख्या प्रथम द्वितीय * गाथयोरर्थः पूर्व प्रावरणयोईयोरर्थात् ज्ञानावरणदर्शनावरणयोईयोः कर्मणोरुदधिसदृग्नामानि सागरोपमानि उदधिः समुद्रस्तेन सदृग् नाम येषांसानि 8 उदधि सदृग् नामानि तेषां उदधि सदृग् नामानि तेषां उदधि सदृग् नाम्नां सामरोपमानां त्रिशत्कोटा कोटी उत्कृष्टास्थितिर्भवति तथा जवन्धिका होना अन्तर्मु इत्त स्थितिः तथैव वेदनौयेइति वेदनीयस्य कर्मण: तथा अन्तराये अन्तराय कर्मणोपि एषैव स्थितिः उत्कष्टाविशत्कोटाकोटौस्थिति: जघन्धिका * अन्तम हुत्त स्थितिः अत्र वेदनीयस्य जघन्या स्थितिरतहत माना सूवक्कतोक्लाअन्य तबादशमुहर्त मानाएवतांवेदनीयस्य स्थिति इच्छन्ति तदभिप्राय म विश्नः २० मोहनौयस्य सप्तति कोटाकोटी सागरोपमानां उत्कृष्टा स्थितिवन्धिका अन्तम हत्त स्थितिः २१ त्रयस्त्रि'शत् सागरोपमाणि प्रायुः होई अंतोमुहत्तं जहनिया १६ ॥ आवरणिज्जाणं टुम्हंपि वैयणिज्जे तहवय । अंतराएय कम्म मि ठिई एसा विया हिया २०॥ उदहीसरिस नामाणं सत्तर कोडिकोडीओ। मोहणिज्जस्म उक्कोसा अंतो मुहुत्तं जहनिया २१॥ तित्तीस राय धनपतसिंह वाहादुर का प्रा०सं० उ०४१ मा भाग भाषा घोडो तुथिति रहवानो कालए तसोही १८ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय विह जघन्यथिति मूहर्त बेदनीकीने विखे छ तिमज जघन्ध मुइत्त अतराय करमेने विखे तिमज सागर ३ जघन्य महत १२ थिति एचिह कम्पनी कही भगवते २. सागरीपमनी सत्तर कोडाकोडि मोहनी कम्पनी उत्कष्टा १२३
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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