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________________ उ०ौका प्र. ३२ ८४५ A भाग 999999009005 [एगन्तरतोरुरभि अतालिसेसे कुणईप ओसं दुक्ख स स म्पीलमुवेद्र बालेन लिप्पईतेण मुणौविरागा६ ५] यो रुचिर मनोने मधुरादौर से एकान्तरक्तोऽत्यन्त मासक्तो भवति सबालोऽज्ञानो जीवोऽतादृशे श्रमनोज रसे प्रदेष करोति ततश्च दुक्खस्य दुक्खसम्बधिनौ पौडां उपेतिप्राप्नोति तेन कारणेन विरागौन लि प्यतेन आसक्तो भवति ६५ [रसाणुगासाखगएय जौबेचराचरे हिंसणेगरूवे चित्तेहिं ते परितावेवाले पौलेइ अत्तट्ठ गुरूकिलिट्टे ६६] बालोऽज्ञानो जोवा रसानु गाशानुगता मधुरादि रसास्वादाभिलास सहितश्चित्र विवधैः शस्त्राद्युपायैः कृत्वा अनेक रूपान् चराचरान् जीवान् हिनस्ति परितापयति कोदृशः सबाला अत्तट्ठगुरुः आत्मार्थं परायणः पुनः कौहशोबालः क्लिष्टो रागाद्य ुपहतचित्तः ६६ (रसाणवाएण परिमाहेण उप्पायणे रक्खण संनिओगे वए दुक्ख । दुहंत दासेण सएण जंतू न किंचि रसं अवरज्भाई से ६४ । एगत रतो रुइरेरसंमि अतालिसे से कुई पचस ं । दुक्खस्म संपौल मुबेद बाले न लिप्पई तेण मुगी विरागो ६५ । रसाणुगासाणु गएय जौवे चराचरे हिंस णेगरूवे । चित्त हिंते परितावे बाले पौलेटू अत्तट्ठ गुरु किलिट्ठे ६६ । रसाणुबाएण परिग्गर्हण उप्पायणे रक्खण I रसने बिखे आणे हे ष अत्यंतः तेहि जचण अवसरने बिखे दुःखपाने दुर्दात मोटे रसने दोषे बींधाइ जीव परंपाडूओ रसकाइ तेहने अपराध करत नथौ ६ ४ एकांतराग धरतु मनोहर रसने बिखे अति घण' पाडा रसने विखे अप्रौतोकर दुक्ख सबंधिनों पोडानो समूह पाने अज्ञानी न लोपाइ तेथे द्वेष रूप दुःख करो साधु रागरहित ६ ५ मनोहर रसने केडे प्रवत्य जोव चराचरत्र से थावरने इथे अनेकजाति विचित्र शस्त्र करी दुक्ख उपजावे अज्ञानी आमाने अर्थे गुरु मोटो किलेथ दुःखपामे ६६ मनोहर रसने रागे करि ऊपार जिवा राखवा विखे आपणा प्रयोजनने बिर्ख कोहांथको ११८ ************************************************ राय धनपतसिंह वाहादुर का भा०सं० उ०४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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