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________________ XA ८४० उ टोका कारना * कारणेन विरागौमुनिस्तेन दुक्खे नरागहेषोद्भवेन कष्टेनलिप्यते ५२ [गन्धाणु गासाणगएय जीवे चराचर हिंसणे गये चित्तेहिं ते परितावरबाले पोले अत्त गुरुकिलिडे ५३] बालो अज्ञानीजीवो गन्धानुगाथानुगतो मनोजगन्धोपेत पुष्प कर्पूर कस्तूरिकादि द्रव्यसुरभिग्रहणाया सहितचित्र विविध शस्त्राद्यपायैः कृत्वा चराचरान् अनेकरूपान् जौवान् हिनस्ति परितापयति पौडयति कीदृयः सः प्रामार्थगुरुः स्वार्थ परायणः पुनः कीदृशः संक्लिष्टीरागा द्य पहितचित्तः ५३ [गंधाणुवाएण परिमाहेण उप्यायणेरक्षण सबिनोगे वएविओगेयकहिंसहिंसे सम्भोगकालय प्रतित्तलामे ५४] गंधानुरतस्य जीवस्य । कुतः सुखं भवति कुतोपि मुख नस्यादित्यर्थः तथैव दर्थयति पूर्व तु गंधानुवादेन सुरभिगंधद्रव्यानुरागणसुरभिगंध ट्रव्यानुरागसति वा परिग्रहण मारूपेण दुकवं स्थात् ततस्तस्योत्पादने दुकव स्यात् ततोरक्षण दुःखं तत: संनियोगे स्वपर प्रयोजने सम्यग व्यापारण दुक्त ततोष्ययेतस्थन्धु नमा अवरभईसे ५१॥ एग'त रत्तो करंसि गधे अयालिससे कुणई पोसं । दुक्खम्म संपील मुवे बाले न लिप्यडू सेण मुणी विरागे ५२॥ गधाणुगांसाणु गएय जीवे चराचरे हिंसदूर्ण गरुवे । चित्तेहिते परितावे बाले पीले पत्तट्ट गुरु किलिट्टे ५३ ॥ गधाणवाएण परिग्गहेण उप्यायण रक्खण संनिओगे । वए विभागय कहिं सुहसे संभोग कालेय ****KARXXXXXXXXXXXXXXX राब धनपतसिंह बाहादुर का पा.सं. २०४१माभाग भाषा मनोहरं गंधने डे प्रवत तु प्राणो चरित्र स थावर अनेक जीवमे मारे हत प्रहत कर विचित्र सस्त्र करौ दुःख अपजाव अज्ञानी प्रामाने अर्थे गुरु मोटो किलेश दुःखपामै ५२ एकति रात भलागंधने बिखे घण पाडूचा गंधमे बिख कर है प दुःखस बंधिनी पीलानी समूह पाम प्रजानी मलौपार तेणे हेष रूप दुखे करौ साधू रागरहित ५३ भला गंधने रागे करी परौग्रहनौ मूरि करी द्रव्य उपार्जवे रागई षवाः रागईघ राच पापणा प्रयी
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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