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________________ २८ अति ययेन विनोतास्फेटिता तृष्णायेन स सुविनौत तृष्णः अत्यन्तदूरोक्कत वृष्णः सन् सौतलोभूतो विहरति बाधाभ्यन्तर सन्तापरहितीविरचिति १३ १. टौका प्रत्याख्यानान तरं चैवबदनाकार्या अतस्त त्फल प्रश्न पूर्वमाह [वयचड मङ्गलेणंभंते जोवे कि जणवइवयवर मजलेच नापदंसमचरित्तबोहि लाभ जपवर नागदंसह चरित बोहि लाभ सपने यजोवे अन्तकिरियं कप्पविमायोववत्तियं पाराहण पाराह १४] हे भदन्तस्त वः शक्रस्तवरूपः सुतिर्या उझैभूय कथन रूपा अथवा एकादि सप्तश्लोकान्ताः यावदष्टोत्तरशतश्लोका वायाः स्तुतियस्तवव सुतिस्तवौ तौ एव मङ्गलं भावमास रूपं स्तुति स्तव 8 मङ्गलन्ते न स्तुति स्तवमलेन जोवः किं जनयति स्तवस्तुति मङ्गलेनेति पाठस्तु पार्षत्वात् गुरुः प्रश्नोत्तरमाह हे शिवस्तवस्तुति मालेन जीवोधान दर्शन चारित्र बोधिलाभं जनयति तत्र ज्ञानं मति श्रुतादि दर्शन क्षायिक सम्यक्त चारित्र विरति रूपं तद्रूप एव बोधिलाभोजैन धर्म प्राप्तिान * दर्शनचारित्र बोधिलाभस्त जनयति ज्ञानदर्श नचारित्र बोधिलाभं सम्पन्नश्च जीवः आराधना ज्ञानादौनां प्रासेवना आराधर्यात साधयति कौट्टयौं । धु मंगलेशं भते जीवे किंज गयडू । थपथई मंगलेणं नाणदंसण चरित्त बोहिलामजणायडू। नाणदसण चरित। बोहिलाभ संपन्नेण जीबे अंतकिरीयं कप्पविमाणी ववत्तियं आराहणं पाराहदू १४ । कालपडिलेहणयाएणं भंते लेन चान दर्शनचारित्र रूपं बोधिलाभं जनयति न मुत्युणं स्तवनमंगलोक करतु ज्ञानदर्शन चारित्ररूपवोधि लाभ जपजावे जामदर्शनचारित्र बोधि * लाभ प्राप्तो जोवः ज्ञानदर्शन चारित्र वोधि लाभ प्राप्त हुआ थका जीव अतक्रिया मुक्त कल्पविमानोपपतिका पाराधनां आराधयति जीव अंतक्रियां करत मुक्ति विमान नव वेबकनो आराधना पाराधे बैदे छहलोवार १४ काल प्रत्यपेक्षणया हे भगवन् जोवः किं जनयति: कासने बिचे जीव राय धनपत सिंह बाहादुरका था •सं• उ.४१ मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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