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________________ ह.टौका अ.२४ ७३५ ४ चेव सलोए १६) (अणावाय मसलोए परस्मणु वधाइए समे अजासिरेयावि अचिरकाल कयंमिय १७) [विच्छिब्रे दूरमोगाढे नासवे बिल वज्जिए * तस पाण बौय रहिए उच्चाराईणि वोसिर १८] चतसृभिः कुलकम् अथ पञ्चमौ समिति प्राह साधुः उच्चारादीनि एतादृशे स्थण्डिले व्यु स्मृजत् परि टापयेत् इति चतुर्थीगाथया सम्बन्धः तानि कानि उच्चारादीनि उच्चार पुरोष प्रश्रवणं मूत्र खेलं कफः सिजाणं ने मः जलकं शरीरमलम् आहारम अणावाए चे वहाइ संलोए। आवाय मसंलोए आवाए चे वसंलोए १६ ॥ अणावाय मसंलोए परमाणु वघाइए। समें असिरेयावि अचिर कालकयम्मिय १७॥ विच्छिन्ने दुरमोगाढ नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाणबीय रहिए राय धनपतसिंह वाहादुर का आम ह.११ मा भाव भाषा रहित असंलोको प्रदर्शनं आद्यभंग १ स्वपक्ष परपक्षनु आव नथी अने वेगलायौ केहन देखबुनथी एपहलीभांगी आगमनं नास्ति परलोको दर्शन * स्यात् आवे कोइनहीं पणिदेखत् होइके एवौजी भांगी २ आपातमसंलोक: जिहां स्वपक्ष परपक्षनु आवळे परदेख नथौ एत्रीजीभांगो आग 8 मनमप्यस्ति यत्र संलोकोप्यस्ति जिहां स्वपक्ष परपक्षनु पावके तथा देखवुके भांगो४ १६ अनाप्यते स्वपक्ष परपक्षाद्या गमनरहिते असंलोको ॐ तद्दर्शनवजिते जौहां कोईनु आव देखवु नयौ १ परेभ्य: प्रामाने संयमस्य उपघातो नास्तिपरथको आ प्रामानी सयमनो उपघात नथौ थातो २ 8 उच्चमीच भूमि स्ति: चौनींची भूमिका नहीके समौ धरतीछे भांगा ३ अशुषिर तृणपत्रादि अनाकौर्णभेद ४ अग्निप्रमुखे थोडाकालनो अचित्त कोधो थंडिलछे अचित्तभूमौछेभेद ५१७ विस्तीर्णे दूरमवगाढे विस्तीर्णछे लांबी चोडी दूरमवगाढे पोहलीहाथ ६ प्रमाण थोडीती आंगल हेठिल अचित्त ७ दुरवर्त्तिने ८ मूषकादिरंधे रहितो ढ्कड़ नधो दूरके उदराप्रमुखांविल नथी त्रसप्राण वीजरहिती वसजीव कोई नथी वीजहरी पण
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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