SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा न सिया न सिया तोत्तग वेसए ४. विनीत यिष्यः आचार्य न कोपयेत् तथाऽपरं अपि न कोपयेत् तथा आत्मानं अपि न कोपयेत् पुनः शिष्यो बहोपघातौ आचार्यस्योपघातकारौ न स्यात् युग प्रधानाचार्योपधाति कुशिष्यवन स्यात् तहष्टान्तः कोप्याचार्योऽष्टविध गरी सम्पत् समन्वितो बहुश्रुतः नसिया निसिया तोत्त गवेसए।४। आयरियं कुवियं नच्चापत्तिएण पसायए। विज्भवज्ज पंजलि उडो वएज्ज न गुरुनी छिद्र ग० गवेषिये ४० बुद्दोव. कदापि रौस उपजे हुते घातन करिवो जिम यूग प्रधानाचार्य नु घात कुशिष्येनौपजाव्यो ते किम कुणएक प्राचार्य * बहु श्रुतमहाशांत प्रकृतिना धणो केतले काले गुरुनेवढपण आव्या जंघावलिखीणथा ते हुँते एकण ग्रामे रया जे भणी सिद्धान्तम इम कयो के बत: जिय * कोहमाण माया जियलोभं छु हंस हे जोधिरा वुढ़ावासे विटिया खवेति चिरसंचयं कम्मं १ क्रोध मांन माया लोभ अनें भूख नोखा जेणे जीती है जे धोर सत्त्ववंत के ते शरोरने असमर्थपणे एकठामे चो मासे रह्या हुता चिरकालनो पापखपावि तथा पञ्चसमियाति गुत्ता उज्जत्ता संजमतवचरण वाससयंपि वसंता मुणिणा पाराहगाभणिया पंञ्चसमन्ति करिसमिता त्रिहु गुप्ते करी गुप्ता तव संयमने विषे उद्यमवंत के जीवनौरक्षानो कर्णहार वारभेदे तप अने चर्णसतरो कर्णसत्तरी अने माहाव्रत तथा पडिलेहणा प्रमार्जनादि साधु क्रियाने विषे एतलाने उद्यमवंत एहवाजे साधु होई तेवरसनासत रहितो क्षेत्रे आराधिक कहिया तीर्थकरदेवनी प्राज्ञाए चालतां तेरहे लिगार दोष नही गुरुप्रतिश्रावक आविकह्यो भगवन् हे श्रद्धाविहार करवे अक्षम हयातुमे पिए खेवि रहो चारित्र पाराधी तेगुरु तिहां रहिवे थके तेहवो गुरुनो विनय वेया वच्चकरता केतले दीवसे गये हुते शिष्यसोभा उपार्जी तेहनौ प्रसंसागुरु वाषकन्हे कहे एहवे एक शिष्य गुरुने कहे अम्हे स्यूं बलो वेयावच्चकरो न जाणं एवं वरसे अमे वेवावञ्चकरिस्य सर्व साधु कहे वेया वच्चदुःकरके एहाथोनी पाखर हाथो हो उपाडे तेहोज शिष्य बोवे यावच्च वाइ अपर शिव अभिमान वसे कहे अम्हे करिस्य जसनौ वांछाइ पिणजस ते सरज्यलाभे ते केतले राय धन पतसिंह बाहादुर का श्रा० सं० उ. ४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy