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________________ श्रौजिन कुपलसूरिजो सदगुरुभ्यो नमः ॥ योगोडो पाखें मिताभिवतातिर्भवतुः महतो जानभाजः सुरवरमहिताः सिहिसौधस्थसिहाः पञ्चाचार उ.टौका प्रवीणाः प्रगुणगणधराः पाठका बागमानां । लोके लोकेशवन्याः सकलयतिवराः साधुधर्माभिलौनाः। पञ्चाप्येते सदाप्ताः विदधतु कुशल' विघ्ननाथ विधाय ॥१॥ श्रोवोरं चोरसिधू इकविमल गुण' मन्मथारिप्रवातं श्रीपार्ख विघ्नवल्लीवनदलनविधी विस्फुरत् कान्तिधारं। सानन्द चन्द्रभूत्यादृतवचनरसं दत्तकर्णबोधं बन्देह भूरिभक्त्या त्रिभुवनमहितं वाननः काययोगैः ॥२॥ उत्तराध्ययनसूत्रवृत्तयः सन्ति यद्यपि जगत्यनेकशः मुग्धहमदनबोधदीपिका दौपिकामिव तनोम्यहं पुनः ॥३॥ प्राप्तचारुविभवो गिरा गिरः श्रीगुरोश्व विशदप्रभावतः वक्ति लक्ष्मुपपदस्त वल्लभः सज्जना मयि भवन्तु सादरा ॥४॥ युग्म श्वेयसे स्ताहणभृता चतुर्दशशतो सता थोपुण्डरीकमुखाणां या हिपञ्चाशदुत्तरा ॥५॥ सूत्र संयोगा विप्पमुकरम अनगारस्मभिक्षुणो विणयं पाउ करि संजोगा विप्प मुक्कस्म अणगारमा भिक्खुणो । विणयं पाउ करिस्मामि आणुपुवि' मुह मे ॥१॥ आणा निद्दस करे। श्री जिनाय नमः। उत्तराध्ययननी शब्दार्थ लिखोये के श्री महावोर देवने वार श्री आचारांग भणीने पछे उत्तरायन भणता श्रौशय्यं भवाचार्य पिछी दशवकालिक भण्या पछी श्रोउत्तराध्ययनकहोयेई तथा उत्तर कहता प्रधान अध्ययन ते भणी उत्तराध्ययन कहीये एहने विष छत्तीस अध्ययन के * तथा प्रथम विनय अध्ययन क ह्यो तेस्या भणी गुरु कहे के जे जिननो धर्म ते विनय मूल के विनय धौ मोच हुई उक्त'च मूलाग्री खंधप्पभवो दुम्मस्म इत्यादि अथवा विणी सा सणे मूलं विणो निवाण साहगो विण्याओ विप्प मुक्कस्म को धम्मो कोतवी विण्याची नाणं माणामोदसणं चरणे हिं तो मुक्खी मुक्खे सुक्यं प्रणावा १ इत्यादिक काररी प्रथम विनयनो स्वरूप कहे के ॥१॥ स. संयोग के प्रकार पूर्वसंयोग माता पितादिक पश्चात् संयोग श्वसुरादिक तथा बाह्यपरिग्रह खेत १ वथर हिरण३ सुवन धन धान दुपद चोपदप कुवीधात बीजोऽभ्यंतर परिबहे मिथ्यात्व १ राय धनपतसिंह बाहादुर का मा. सं.२०४१ मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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