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उ० भाषा
अ०१
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लागा किमवयरकरस्यो है हस्तौ राजा ताहरो बल किहां गयो ते अवौतनो फलपाम्यो एवचनसांभली हाथीने रोस चक्का आलान भांज सांकल सोडता पसाने पूठे धायो तापसना श्राश्रम विद्यास्था सगलाइ तापस हत प्रहत कौधा बली राजा श्रेणिक तिमज पकडावाना उपाय कन्या पिथहाथो वसिनायें तेणे प्रस्तावे तेथे राज्यमौ गोत्रजादेवी तेथे चाबी हाथी समभाव्यं ग्रहो हस्ती राजा गजगतिनाचालणहार सर्वलचण संपूर्ण सांभली रायने स्य माह करके पूर्व भरयंभारो चंपा एहवे नामे नगर वसु नामे विप्र ते महाधनवंत नित्य सहस्र भोजन करे अने वरस प्रतियाग करावे तेहवे जालववारकर राख्यो जे उगरता भात पाणी लेजे घने महीने रूपौयोइमते धरती समारे ब्राह्मण जौमे तिहांखानमंजार आक्ता वारे पिस ते धनदेव श्रावक के तेथे कह्यो पात्र दान दोधे इम लाभ के वसु कहे ब्राह्मण ते पात्र धनदेव कहे पात्र ते साध बसु न माने ते धनदेव साधूने आपणे घरे तेडो भातपांणी पड लाभ्या तेहना पुण्य थौ मरी धनदतनो जीव श्रेणिकने घर नंदा राणौनो पुत्र नन्दखेण हम्रो ते दानफल भोगवेके सुपावनो फल थोडोई अनन्त गुण थया अने तेहने वस्तु घणो हो दोधो पिस अज्ञानना वस थौ सिचानकहा थो थयो ते सम्बन्ध सांभलौ जातौस्मरण उपनो आपदामे भलो विवेक उपनो आपणपे जिहां रायनी हस्तिमाला के तिहां प्रावोउभो रह्यो प्रभाति समे राजायें हाथी भव्यो सांभलीने बधाव्यो अनेक मङ्गलीक करो पाट हस्ती एकदा प्रस्ताव हम विहल कोणिकने विरोधेनासो सिचानिक लेई विशालाइ गया चेडे महाराये राख्या कोणिके विसाला वोटी मनुष्य कोडो मरण पामि पिण विशालाई लेवार नहो नित्य सिंचाकनके चढी रातो वाह दोये कोणिकना कटक मंत्री स पढे अने ३२ सहस्र हाथी सणा मद गलित थाये कोणिक राजा अनेक उपाय कथा पिण हाथो वसिनावे जे कूडे खेठे सर्व ज्ञान करो जाये तिवारी ते उपाय सर्वविफल थाये कोणिकनो कटक दहिनी पर विलोयो तिवार कोषिके को जे कोई हाथोने तेहने मारे तेहने तच सुवर्ण प्रभु तिवारे एकणसुभटहां भयो एकामह' करिस्युं इम
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राय धनपतसिंह बाहादुर का आ० सं० उ० ४१ मा भाग