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________________ 4.३६ १०८० N *सागरीपमै स्थितिर्भवेत् २२६ [साहिया सागरा सत्त उक्कीसेण ठिई भवे माहिदम्मि जहबेणं साहिया दुबि सागरा २२७] माहेन्द्रलोके उत्कृष्ट न मसाधिक सप्तसागरोपमाण्यायुः जघन्य न साधिक है सागरीपमे २२७ (दसचेव सागराई २२८) ब्रह्मलोके उत्कष्ट न सप्तसागरीपमाथायुः - जघन्ये न सप्तसागरीपमे २२८ [चउहससागराई उक्कोसेण ठिई भवे लन्तगं मिजहबेणं दससागरीवमा २२८] लान्तकदेवलोक उतकटन चत 8 सागरीपमानि आयुः स्थितिर्भवत् जघन्यतो दशसागरोपमानि आयुस्थितिर्भवेत् २२८ [सत्तर स सागराई उक्कोसेण ठिई भवे महासकै जहवे याच उदस सागरीवमा २३०] महाशंक देवलोके उत्तष्टेन सप्तदशसागरोपमानि आयुः स्थितिः जघन्येन चतुर्दशसागरोपमानि आयुः स्थितिर्भवेत् २३० [अड्डा भवे । सणंकुमारे जहन्नण दुन्निऊ सागरोवमा २२६ ॥ साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे । माहिदम्मि जह नेणं साहिया दुन्नि सागरा२२७॥ दसचे व सागराई उक्कोसेण ठिई भवे । बंमलोए जहन्न णं सत्तज सागरोधमार२८ चउद्दस सागराडू उक्कोसण ठिई भवे । लंतगमि जहन्ने ण दसऊ सागरोवमा २२६॥ सत्तरस सागराएं उक्कारीण ठिई भवे । महामुक्के जहन्न णं चउदस सागरोवमा २३० ॥ अट्ठारस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे। सहमारे जह सागरोपम सातनी उत्कृष्टौ थिति होइ माहेंद्र देवलोके जघन्ये तो माझ रो वे सागरोपम २२७ दस सागरोपमनी उत्कृष्टौ स्थिति हुई ब्रम्ह देव लोके देवतानी जघन्य तु सात सागरीपम २२८ चौद सागरोपमनी उत्कृष्टी स्थिति हुइ लांतके देवतानी जघन्यतो दस सागरीषम २२६ सतर साग रोपमनी उत्कष्टी स्थिति हुवे महाशक देवतानी जघन्य चौद सागरोपम २३० अठारे सागरीपम उत्कष्टी स्थित हुइ' सहस्रार देवलोके जघन्य राय धनपतसिंह बाहादुर का पा०सं०१०४१मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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