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________________ सूत्र [पलिपोवमाई तिबेो उक्कोमेण तु साहिया पुचकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुडुत्तं जहविया २.३] (कायठिई मा आयं अन्तरन्ते सिमभवे अएंतकाल मुकोस अन्तीमुहत्त' जहवियं २०४) मनुजानां गर्भजाना बौणि पत्लयोपमानि पूर्वकोटि पृथक्क न साधिकानि उत्कृष्ट न कायस्थिति व्याख्याता जघ न्धिकाचान्तम इत्त स्थिति ाख्याता तेषां गर्भजानां मनुजानां कालस्थान्तरं उत्कृष्ट अनन्तकालं जघन्यक अन्तर्मुहत कालान्तरं यं २०४ [एएसिवनोचेव गधोरसफासो सण्डाणादेसभोवावि विहाणाइ सहस्मसो २०५] एतेषां समूहिमगर्भज मनुजानां वर्णतोगश्चतोरसतः स्पर्शतः संस्थानादेयतथापि सहवसो विधानि भवन्ति २०५ अथ देवानाह (देवा चबिहा बुत्ता तं मे कित्तयीसुण भोमिलवाण मन्तर जोर सवैमाणि या निया ॥२०१ पलिओवमाउ तिनिओ उक्कासणंतु साहिया। पुब्बकाडि पुहुत्तेणं अंतीमुहत्त जहन्निया ॥२०२ काय ठिई मणुयाणं अणंतरं तेसिमं भवे । अणंत काल मुक्कासं अंतोमुहुत्त जहन्नयं २०३। एएसिं वन्नो चेव गधयो रस फासी । संठाणा देसीवावि विहाणाई सहमसी। २०४ देवा चउ विहा वुत्ता ते मे कित्तयो सुण । भोमिज्ज दुरी १०८ पत्योपमनौ त्रिहुनौ उत्क्लष्टौ कही तीर्थ कर देवे पूर्वकोडौ पृथुकत्व ८ लगौ सातभव पूर्वकोडौथौ करौने पत्यनु आयु भोगवें पूर्व पृथुकत्व * ते अंतमुहर्त जघन १er काया स्थिति मनुष्चनौ जेह भणी तेहनो तेह मांहि । ८ भव रहे पांतरी वेहनो मनुश्चने कहौस्य अनंताकासनो उत् कष्टी अंतरनि गोदमाहि जाइ तु अंतर्मुहर्त जघना २०. एमनुष्चना वसं थको गंध धको रस थको फरस थको संस्थानना भेद थको विधान मैद सहस्रगमै २०१ देवता चिह्न भेदे कच्चा भगवंते ते मुझने कहतां प्रति सांभलि के शिष्य भूमि अपना ते भूमिज भूवनपति विविध पर्वतने अंतरे ऊप राय धनपतसिंह बाहादुर का पा•सं• न.४१मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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