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________________ स.टोका .60 EKOXXXXXNAIKHEREMONOMOMEMORMEMONOKE भजपरिसपावलोकैकदेशेव्याख्याताः सर्च व न व्याख्याताः इतोऽनन्तरं कालविभाग स्थलचराणां चतुर्विध वच्चे १८४ (सन्तई पप्पणाझ्या अपज्जवसि यावियठिन पडसाईया सपज्जवसियाविय १८५) सन्ततिं प्राप्यते थलचरा अनादयोऽपर्यवसिताचापि स्थितिं भवस्थितिं प्रतीत्य पावित्यसादयः मपर्यवमिताथापि वर्तन्ते १८५ (पलिग्रीवमार सिनेमो उक्कीमेण वियाहिया पाउठिईथ लयराण' अन्तीमुहुत्त जहवयं १८८) स्थलचराणां उत्कष्टन बोशिपल्योपमान्यायः स्थितिाख्याता जघन्यतः स्थलचराणां अन्तर्मुहत मायुः स्थिति:१८६ अथ स्थलचरामृत्वा स्थलचरेच बोत्पद्यन्त तदाकियकालेन8 उत्पद्यन्ते तां कालस्थिति माह [पलिपीवमाई तिबेट उक्कोमेणं तु साहिया पुवकोडी पुहत्ते ण' अन्ती मुहुत जहनिया १८७] स्थ लचराणां स्वकोये* काये एव समुत्पद्यमानानां चौणि पत्त्योपमानि पूर्वकोटि पृथक्के न साधिकानि उत्कृष्ट न कायस्थितिाख्याता जघन्यिकाकाय स्थिति स्तेषामन्तमुहर्त देस तेसवे न सब्बत्य वियाहिया । इत्तो काल विभाग'तु तेसिं वाच्छ चउ विहं ॥ १८३ संत पप्पणाईया अप ज्जबसियाविय । ठिइंपडुच्च साईया सपज्जवसियाविय ॥ १८४ पलिओ बमाओ तिन्निो उक्कोसण वियाहिया। पाउठिई बलयराणं अंतोमुहत्तं जहनिया ॥ १८५ पलिओवमाओ तिन्निो उक्कोसणंतु साहिया। पुब्बकोडी पुर राय धनपतसिंह बाहादुर का पा .सं.उ.४१मा भाग । लोक चौदराजना एकदेशने भागे ते सर्पछे नधौ सबले कडा भगवंते एतला कह्या नन्तरकालनी विभाग विवरो ते थलचर चिहुं भेदे कह १८१ प्रवाहमार्गे बलचर अनादिहे अपर्यवसित अंतपिणि थिति आधौसादि अने सपर्यवसित छहपणि १८२ पल्योपमनौ त्रिहुनी स्थिति उत्कृष्टौ कही तो करे आजखानौ स्थिति बलचर जोवनी अंतमुहुर्त जघना १८३ पल्योपम त्रिहुनौबिति उत्कष्टी कही तीर्थ करे पूर्वकोडि पृथगत्वे अधिक
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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