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________________ उ० टोका अ०३६ १०७३ सूत्र भाषा ब्याख्याताः जलस्थानेषु एव न तु सर्वत्र इतोऽनन्तरं तेषां जलचर जीवानां तु कालविभागञ्च तु विध ं वच् १७५ [सन्तद्र पप्पणाईया अपज्जबसियाविय ठिद्र' पडुचसाईया सपज्जवसियाविय १७६] ते जलचरजीवाः सन्ततिं प्राप्य प्रवाहमार्गमाश्रित्य अनादयोऽपर्यवसिताय वर्त्तन्ते स्थितिं प्रतीत्यभवस्थितिं कार्यस्थितिं चाश्रित्यसादयः सपर्यवसिताब सन्ति इति भावः १७६ [इक्काय पुव्वकोडी उक्कोसेण वियाहिया आउठिई जलयराण अन्तोमुहुत्त जह त्रिया १७७] जलचराणां मत्स्यादीनां जोवानां उत्कष्टेन आयुः स्थितिरेका पूर्वकोटौ व्याख्याताः पूर्वस्य तु परिमाणं एतत् सप्तति कोटिल चवर्षाणि षट् पञ्चासह कोटि वर्षायि एतैर्वर्षेः पूर्व भवति जघन्धिका श्रायुः स्थितिश्चैतेषां अन्तर्मुहर्त्त एव व्याख्याताः १७७ अथ जलचराणां कार्यस्थिति न सव्वत्य वियाहिया । इत्तोकाल विभाग तु तेसिच्छ' चउव्विहं १७४ ॥ संतद् पप्पणाईया अपज्जव सियाविय । ठिs' पडुच्च साईया समज्जव सियाविय १७५ ॥ एक्काय पुव्वकोडी उक्कोसेण वियाहिया । बाउ ठिई जलयराणं अंतो मुहत्तं जहन्निया १०६ ॥ पुव्वकोडी पुहत्तं तु उक्कोसेण बियाहिया । काय ठिई जलयराणं अंतोमुहुत्त जहनिया १७७ ॥ चौदराजने एकदेशे ते जलचरक परं नथी सर्वलोक चौदराजमे एतलानंतरकालनो विवरो तेहनो कटिस्यु' सादि १ पर्यवसित २ अनादि २ अपर्यव सित १७२ प्रवाहे जलचर अनादि अपर्यवसित अंतपौण के थिति श्राश्री आदि सहित अने पर्यवसित देव्हडो १७२ एक पूर्वनो कोडो उत्कष्टी कही तोर्थ' करे आउखानी स्थिति गर्भज समूर्च्छिम जलचर जीवनी अतर मुहर्त्त जघने १७४ पूर्व कोडनो पृथवीकाय थितौ तेथको अंतर्मुह त्ष्ट कही संख्या पृथवीनो कार्यधिति जलचरनो सात आठ भव जलचरनो जलचर माहि रहे प्राणी अंतर्मूहर्त्त जघना १७५ अनंतकाल १२५ *************************************** राय धनपतसिंह बाहादुर का था० सं०० ४.१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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