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________________ १०४६ ४ वर्यादीनां भावरूपत्वात् ८३ अब अप्कायमैदानाह [दुविहा आउ जौवाउ मुहुमा बायरा तहा पज्जत मपज्जत्ता एवमेए दुहापुणी ८४] [बायरा जे उ टोका * उपज्जत्ता पञ्चहाते पकित्तिया सुद्धोदण्य उस्मेय हरितणू महिया हिमै ८५] (एगविह मनाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया सुहुमा सबलीयंमि लोबदेसेय प०३६ * बावरा ८६) तिस णां गाधानां अर्थः अपजीवास्तु विविधाः शूक्ष्मा स्तथा बादरा अपि पर्याप्ता अपर्याप्तावदिविधा पुनवर्तन्ते इति शेषः ८४ अथ पुनर्बाद रायेपर्याप्ता अप्जीवास्ते पञ्चधाः प्रकीर्तिताः शुद्दोदकं मेघसमुद्रादेर्जलं अवश्यायः शरदादिषु ऋतुषु प्राभातिक शूक्ष्मवर्षारुपः हरितस्निग्ध पृथ्वीभवस्तृणा अबिन्दुः ३ महिकाजलं गर्भमासेषु शूक्ष्मा धूमरूपाः हिमे इति हिमजलं खन्धारदेशादौ प्रसिद्ध ८६ तत्र शूक्ष्मा अप्कायजौवा एकविधा अनानाखास्तीर्थ करर्थ्याख्याताः तत्र शूक्ष्मा अपकाय जौवाः सर्वस्मिन् चतुर्दश रज्वामलोके वर्तन्ते बादरा अप्काय जौवालोकस्यैकदेशेवर्तन्ते ८७ (सन्तइ पप्पणाईया अपज्जवसियाविय ठिई पडुच्चसाईया सपज्जव सियाविय ८८) सन्ततिं प्रवाहमार्गमाश्रित्य अप्काय जौवा अनादिकाः पुनरपर्यवसिता अपि स्थिति भव तहा। पज्जत मपज्जत्ता एवमेए दुहापुणो ८५ । बायरा जेउपजत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदएय उस्मेय हरतणु महिया हिमे ८६॥ एगबिह मनाणत्ता मुहुमा तत्व वियाहिया। मुहुमा सव्वलोग मि लोगदेसैय बायरा ८७ ॥ राय धनपतसिंह बाहादुर का पा.सं.१.४१मा भाग जपरि पाणौधु अरि ४ हौम जमइ ८५ एक प्रकारे पणि नाना प्रकारे नही सूक्ष्म अपकायना जीव तौहां कह्या तीर्थ कर सूक्ष्म अप कायना जीव सर्वलोक चौद राज व्यापी रह्या लोकना एकदेस सरोवरादिकने बिखे वादर अप्कायो ८६ प्रवाह मार्ग जोई तिवारए सुक्ष्म वादर पृथिवी अनादिके अने अपर्यवसित छहडी ते पृथिवी जीवनो भव स्थिति भवे रहिवो काय थिति काया रहिवो ते आधी
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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