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________________ स.टौका .४४ पप्पणाईया अपज्जवसियाविय ठिई पडुच्चसाईयासपज्जवसियाविय ८०] सन्ततिं प्राप्य प्रवाहमाथित्व एते शूक्ष्माः बादराव पृथ्वीकायहोवा अनादव आदिरहिताः च पुनरपर्यवसिता अपि अन्तरहिता अपि स्थितिं प्रतीत्यभवस्थिति कायस्थिति रुपांस्थितिमाथित्य संसारवर्तीजीवः संसार पचौकायां तवर्नोसन् पृथ्वीकार्य कियत्कालं तिष्टति इति स्थिति विचारमाथित्य जोवा: स.दिकाः सपर्यवसिताथापि वर्तन्ते ८० [बावीस सहस्साए' वासाणको सियाभवे पाउठिई पुढवीणं अन्तीमुहुत्त जहबिया ८१] [पसंखकालमुक्कोसं अतीमुहत्त' जहबिया कायठिई पुटवौणं तं कार्य तु अमायो ८५] पृथ्वीनां पृथ्वीकाय जीवानां वर्षाणां दाविंशति सहस्राणि उत्कृष्टा प्रायुः स्थितिर्भवेत् जबन्धिका च अन्त मुहर्त स्थिति वेत् ८२ भवस्थिति उक्त्वाकायस्थितिं वदति असंखेति पृथ्वीनां इति पृथ्वौकायजीवानां पृथ्वीकार्य अमुञ्चतां पृथ्वीकार्यस्थितिः संसारचेद्भवति ताई उत्कष्टा असंख्यकाल स्थितिर्भवेत् जघन्य का च अन्तमु हत्त स्थितिर्भवेत् कोर्थः यदि पृथ्वीकायस्थीजीवः पृथ्वीकायत प्रत्वापुनः पुनर्निरन्तरं पठी काये एव उत्पद्यते तदा अपज्जवसियाविय । ठिईपड़च्च साईया सपज्जबसियाविय ८०॥ वावीस सहस्माई बासागुक्कोसिया मब । आउ ठिई पुढबौणं अंतोमुहुत्त जहन्निया ८१॥ असंख काल मुक्कोसं अंतोमुहुत्त जहन्नियं । कायठिई पुढवीणं तंकायंतु अमु ॐ बावीस हजार वरिस उत्कष्टी हुई आऊखानीधिति थकी पृथवीनी अंतमूहर्तनी जघन्य स्थिति ८० असंख्याता काल नी अंतरपडे ती उत्कष्टी अंत द्हर्स जघन्य अंतर कायस्थिति पृथीवी पृथवीनो पृथिविमाहिएम तैहनी कायने मूके वार वार तेहने ते माही रहे ८१ अनंताकालनी अंतर उत् कष्टी अंतर्मुहुर्त जघन्य अंतर पोताने पृथिवीने विज]मि छांडे थके पृथिवीना जीवन पृथिवी पण अंतर पडतु ८२ एह पृथिवी कायनाबर्ष थकी राय धनपतसिंह बाहादुर का पा सं. छ. ४१ मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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