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________________ उ० टोका अ०२६ १०२२ सूत्र भाषा E璨琛 सदृशाः गुरुकाः लोहपारद सदृथाः तथा पुनर्लघुकाः अर्कतूलसदृशाः २० (सोया उन्हायनिडाय तहालुक्वाय श्रहिया इइफासपरिणयाए पु समुदाहिया २१] तथा पुनः केचित्पुदुलाः सौताहिमसदृशाः च पुनरुष्णा अग्नि सदृशाः च पुनः विग्धाः ष्टत सदृशाः तथा रुक्षाच आख्याताः इति अमुनाप्रकारेण एतेपुद्गलाः स्पर्मपरिणताः श्रष्टप्रकारेण तौर्थकरेरुदाहृता २१ [सठाणपरिणयाजेड पञ्चहातेप कित्तियापरिमण्डलाय बट्टा सं सारं समायया २२] ये तु पुद्गलाः संस्थानपरिणतास्ते पञ्चधाप्रकीर्त्तितास्ते के तानाह परिमण्डलाकङ्कणाकारा पुनवन्तु लाल काकृतयः पुनस्तिस्ाः संघाटकाकाराः पुन चतुरस्राः चतुष्कोणः चतुष्किकाकाराः तथा पुनरायताः प्रलम्बाः रज्वाकाराः २२ संप्रत्येषां एव परस्परं सम्बंध माह [वसभ अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउयाचे व गुरुयालहुयातहा १६ ॥ सीया उन्हाय निद्दाय तहा लुक्वाय चाहिया । इइ फास परिणया एए पुग्गला समुदाहिया २० ॥ संठाय परिणया जेउ पंचहा ते पकित्तिया । परिमंडलाय बट्टा सा चउरंस मायया २१ । बन्नो जे भवे किन्हे भइए सेउ गंधओ । रसओ फासओ चे ब भद्रए संठाणओविय२२ ॥ फरसने परिणामे परिणमना जे पुदगल आठे प्रकारे ते कह्या तीर्थंकरे खरखरा सु हाला भारो हलुआ तथा वलौ १८ ताठा ऊका चोपच्या तथा वली लूखा का हुण प्रकारे फरस पणे परिणमना पूराइगलाइते पुद्गल समाक् प्रकार कया तौर्थकरे २० संस्थानपर्ण परिणमना जे पुद्गल पांचे प्रकार ते कड्या परिमंडल चूडौनौपरे वाटली मोदकनौपरिं विखूणा चोखूणा श्रायतलांवा २१ वर्ण थको जे कालो पुदुगलते गंध की भजयो भजनार ant भजिवो जाणवो सुगंध हवे तथा दुर्गंध हुइ रस५माहि फरसद कोइ कहुवे कोइकनहोवे संस्थान थको भजिवो संस्थान ५माहि कोइ कहवे २२ ************************************** कमधूनपतसिंह वाहादुर का आ०स०ड० ४१मा भा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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