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________________ पत्राक पत्राक विपय और प्रमादि विपय और प्रश्नादि मारणासिक समुद्घाप्त समबहत जीय के तेजम पचिणे , जिस्को यौदारिफशरीर तिस्को वैझिय शरीर की फिसनी अवगाहना औधिक सूत्र, जिस्को वैक्रिय तिस्को औदारिक शरीर इत्या एवं एफेंद्रिय द्वीन्द्रियादि समयहत के तेजस दि वक्तव्यता ६२९ की अवगाहना काही | ६२३ | यह औदारिक धैक्रिय आहारक तेजस फार्मण । एवं मरणसमुदधात समवहत नारकी क तेजस शरीरों में द्रव्याप से प्रदेशाधम द्रव्यार्य प्रदेशाध की, पद्रिय तिर्यध मनुष्य असुरकुमारादि से फोन फिस्से थोता घणा है इत्यादि निर्णय ६३० समपन्त तेजसायगाहमाधिकार ६२१ | यह औदारिक वैक्रिय माहारक तेजस फार्मण कामेण शरीर पांच प्रकार एफेंद्रियादि भेद स , शरीरों में जघन्यावगाहना उत्कृष्ठायगाहना म न तेजस शरीर समान धक्तय्यता सर्व कहना ध्यमावगाहना में कोन फिस्से अस्पयवाव १३३ .. अनुत्तरोपपातिकवेष पर्यंत ६२७, (२१ वा पद कहा) . सौदास्कि शरीर पल कितनी दिशि से विणे त्यादि निक क्रिम पुलादि मो कक्षा १२८LETरया कहते हैं । कतनी क्रिया काही कामिकी प्रकायावत्कामफरार . Rani
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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