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________________ थिपय और प्रश्नादि पत्राक विपय और प्रश्नादि पत्राफ अतीतादि| ४५४ घटु नही पुरस्कृत कदाचित् , एघ सर्यापसिङ । देयत्व में भी कहा, १५१ | नारकी के नारकी पने मे कितने द्रव्येद्रिय इत्यादि| ४५१ एफक मनुष्य के नारकीपने मे , यावत्पचेद्रिय (द्वार पूर्ण हुआ) तिर्यच पने मे मनुष्यपन मे, वानभ्यन्तर जो नारकी का कितने माद्रिय, पाच है, एष वे तिप्त यावत् ग्रेवयक देवपन मे, विजयवैजय मानिक पर्यन्त यथोचित कहना, एफेक नार न्तादि देवपने मे, सधार्थसिद्धदेवपने कितने -की के कितने अतीत बटु पुरस्कृत इत्यादि द्रव्येद्रिय अतीत बद पुरस्कृत इत्यादि ४५२ वक्तव्यता| ४५७ वानष्यन्तर जानिपी जैसे नारकी, सौधर्मदवमी एकेक नारकी के नारकीपने मे कितने भाद्रिय जैसे नारकी सौधम दव को पचानुत्तर देवपने अतीत ४५८ में, सर्वासिद्धदेवत्वमे अतीतादि कहा, अनु (१५ पद समाप्त हुआ) प्तरदयको नारकीपन मे अतीतादि १५३ अनुसरदय को सर्वामिद्धदेवत्य मे। सर्वार्थसिद्ध ॥ १६ वा पद कहते है ॥ देव को नारकीपन मे एव मनुष्यवज सर्च मे पनरह प्रकार प्रयोग कहा ।
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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