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________________ विपय योर प्रभूनादि जघन्य उत्कृष्ट अजघन्यानुत्कृष्ट अवगाहना के ! नारी के अनन्ता पर्याय २४८ जघन्य उत्कृष्ट मध्यम स्थिति के नारकी के पत्राक नन्त पयाय कहे | २४९ जघन्य उत्कृष्ट मध्यम गुण कालक नारकी के पर्यय वक्तष्यता २५० अन्य उत्कृष्ट मध्यम प्राभिनियोधिक ज्ञानी नारी की पर्यं वक्तव्यता २५१ एवं श्रवज्ञानी तथा अवधिज्ञानी नारकी के प का ज्ञान भी कहना मुत्य उत्कृष्ट मध्यम चक्षुदर्शनी नास्की के मनन्ता पर्याय 1. मसुदर्शनी अदर्शनों को कहना २५१ २५२ विषय और प्रश्नादि जघन्य उत्कृष्ट मध्यम अवगाहना के असुरकुमार को अनन्ता पर्याय कहे २५२ एष स्तनितकुमार पर्यन्त कहना २५२ जघन्यावगाहना के पृथिवीकाय पर्यवाधिकार २५२ एव उत्कृष्ट मध्यमाघगाष्ठना पृथिवी पत्र | २५३ जघन्य मध्यम उत्कृष्ट स्थितिक पृथिवी पयय २५३ जैसे पहले कड़े से से सर्व आलावा वनस्पतिकाय पर्यन्त सर्व वक्तव्यता कहनी | २५३ जघन्यावगाहनादि द्वीन्द्रिय पर्याय वक्तव्यता २५३ एवं श्रीन्द्रिय चतुरिदिय पर्येव वक्तव्यताधिकार २६३, जघन्यावगाहन पहुचेन्द्रियतिय पुर्येध व 优 कष्यताधिकार २५७ जघन्य व्यादि स्थितिक पर्चेद्रिय तिर्यंच पर्यय | २५८ प पत्राक
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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