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रायपसेगी। सपेहित्ता आभिवोगिए देवे सदावेद सद्दावित्ता एववयासी एव खलु देवाणु प्पिया समण भगव महावीरे जवुद्दीवेदीवे भारदेवासे अामलकप्पाणवरी वहिया अवसालवणे चेहए अहापडिरूव उगृह उगिरिहत्ता सजमेण तवसा अप्पाण भावमाणे विहरत्ति तगच्छहण तुज्झदेवाणु प्पिए जवुद्दीव भारह वास आमलकप्पणयरि अवसान वणे चेतिसजमण भगवमहावीर तिक्खत्तो आयाहिण पवाहिण करेत्ता णमसह वदित्ता णमसित्ता साइ साद णामागोवाइ साहे हसहित्ता समणस्स भगवउ महावीरस्स जोयणपरिमडल नकि चितण वा पत्त वा कहवा सक्करवा यासुदूमे चोरका पूय दुभि गध तसच आहुणिय २ एगते पडेह पडित्ताण व्वोयगणाइ मट्टिय
चिणात् दक्षिणहस्तादारभ्य प्रदक्षिण परितीभाम्यती दक्षिणएव पादचिण प्रदचिण स्त कुरुत। कृत्वा च वन्दध्व नमस्यन वन्दित्वा (नमसित्वावसाद सा) इति स्वानि स्वानि पात्मीयानि नामगोवापि राजदन्तादिदर्शनान्नामशब्स्य पूर्वनिपात' सावद्यत कथयत कवित्वा च श्रमणस्य भगवती महावीरस्य मर्वत सवासुदिक्षु समतत' सवासुदिक्षु योजनपरिमपडल परिमाण्डल्येन योजनप्रमाण यत् वेव तब यन्नृणा कि निम्बादिकाष्ट वा काप्टशकल' पव वा निम्बाश्वरथादिपवजात कचबर वा प्लक्ष्णनृणधूल्यादिपुञ्जरूप कथ भूतमित्याह । अशुचि अशुचिसवितमवीचमपवित्र तिकुधितमतएव दुरभिगन्ध तत् सवर्तकवातविकुवणेनाइत्याहत्य एकान्ते योजन परिमण्डला ठेवात् देवीयसिदेसएडयत अपनयत एडयित्वावनासुदक नातिमृत्तिक यथा भवति परिपरादूएहजसुखनउकारणकडद् हुसिद इमकरीनदू एह विचारत पहचउ विचारीनर मेवक देवप्रति तेडाव तेडावीन एहवउ बोललतउ हुतड एमनिश्चय महोदेवानुमिया श्रमण भगवत महावीर नबूद्दीपद भरतक्षेबद् यामलकप्पा नगरीनदु बाहिरि आमुसालवन चैत्यनइ विपद् योग्य अभिगृह थानागुहीनद सयमद' तपकरी भात्माप्रति भावनायका विचरन्छ तणदूकारण ज्ञाउ' तुम्हेदेवानुप्रियाउ जद्दीपद भरतक्षेवमति प्रामलकप्यानगरी प्रति आमुमालवन चेत्ययक्षायतनप्रति श्रमण भगवत महावीरप्रति वणिवेलानिमणापासाधकी माडीप्रदक्षणाकरीन वादढ नमस्कारकहउ वादीनद नमस्कारकरीन पोतानानामगावकहर , कहीनद थमण भगवतन महावीरनह योजनप्रमाणचउपपरमाडलालगद जेहका प्रथि अथवा पान काप्ट अ' काकरउ असचिमलमुवादिकअपवित कउहीय भुडउगधतेहनदीस