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________________ रायपसेगी। सीहासणाउ अमुट्ठद२१ पायपीढाउ पच्चोरूइइ२२ चा एगसाडिय उत्तरासग करेत्ता सत्तट्ठपयाद् तित्थयराभिमुहे अणुगच्छत्ति सत्तद्वय याइ तित्यराभिमुद्दे अणुगच्छित्ता वाम जाणु अचेइत्ता दाहिणनाणु५ धरणितल सित्तिक्क हट्ठा तिक्ख त्तोमुद्धाण धरणितल सिणिवे सित्ता २ इसपचुन्नमद इसिपचुगणमित्ता करयलपरिग्गडिया सिरसावत्त दसणइ १० मत्थए अन्जलि कट्टएव वयासी नमोत्युण' अरिहन्ताण भगव'ताण ११ आदिगराण तित्वगराण' सय सहाण समास' । यथा मलम्बिते इति प्रलम्ब पदकस्त प्रलम्बमान पाभरणविशेष धौलन्ति च भूषणानि धरन्तीति मलम्बधील पणधर, सूर्व च प्रलम्बमान पदस्य विशेषात् परती निपात। प्राकृतत्वाद् सर्पबशादेव ससम्मम मम्भम दूर। विवक्षित क्रियाया बहुमानपूर्विक। प्रवृत्ति सह सम्भमीयस्य वदनस्य न मनस्य वा तत् ससम्भुम, क्रियाविशेषणमेतत् त्वरित भीषु चपल सम्भमवधा- . देव' व्याकुल यथा भवत्येव सुरखरीदेवदरीयावत्करणात्' (सीहासया भन्मुट्ठ पद्धितापायपीठाउपच्चीरहदपच्चीसहित्तापाउयाउसुयद सुइतातित्ययराभिमुहसत्तकृपया पणुप्रधासूयाम सीहासम्मथऊठ उठीन पादपीठागलिनान्हउबाजीव तेहथकीऊतरीन एकसाटकपीलणिरहितउपलोउठणी तेणकराउत्तरासगकरकरीन साताठपगलातीर्थ करसाहसउजाइ माताठपगला तीर्थकरमाहमउ जदून डावउठींदवण अपाडीनए जिमण उठींचणप्रथवीतलइनविषदथापीन एहवउ करीन बणिवेला मस्तक धरती तलानविपद थाप थापीनगीडासमस्तक उचउकरीन बिहु हाथिकरीनीपजावउमस्तकनविषयावर्तक प्रदक्षणरूप बिहु हाथनादसइनख मातकि पजलीकरीन एह बोलतुहु तउ नमस्कारथाउ अह तभणीचउसहिदइनइपूज्यनीकतहत ध्वयादियुक्ततेभगवत धर्मनीअदिनाकरणहार चतुर्विध संघभूपणतीर्थकरनाकरणहार परीपदेशविनास्वयमेवप्रतिबोधपाम्या पुरुषमाहिउत्तम पुरुषमाहि १ अभूर, अम्भ प्रभु द्वित्ता । २ पायपीढा उपच्चीरहर, पायपीठातोप बारहति । पच्चीकहता एगसा डिय उत्तरासग केरत्ता सत्तट्टपयाद तित्ययराभिमुई अणु गत्ति सत्तापयाइ तित्यराभिमुह, पन्चोरहिता पाठयाउ मुद्र पास्याउमइत्ता एगसाडिय उत्तरासगकांति एगसाडिय उत्तरासकरता सतपयो दुतित्यगाभि महे अणुगन्छति सत्तकृपयाड तिलगराभिमुह, पच्चोरहिता पाउयाउमुपवमुदत्ता तित्यपराभिमुह सत्तह पयाइ प्रण गर। ४ वाम जाण अवेइत्ता, वाम ाणु प्रवेति, नाम आणु अवेद। ५ दाहिण जण , दाहिय जाण रलाय्यति दारिण जाय। ६ सित्तिक घट्ट, मणिहाति, सनिइछ । ७ सिणिमित्ता, सिणिमेनि मिनमेनमिता। ८ दसवन्नमद इसिपचुगणमित्ता, ईसि पत्यणमिति, ईसि पच्चुनम पन्तुणमित्ता वाम नाणु अवेद। करयल परिग्गहिय, करयलपरियहिय, साहरिताकरयल परिगृहियर। सिरसावत्त दरमह , सिरसावत्तयम् । ११ भगव ताण, भगवन्ताम् ।
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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