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________________ २२२ रायसेणी 1 यया वदित्ता मसित्ता जामव दिसिपाउन्भूबा तामेव दिसि पडिगया ततेण से चित्तेसारही के सिस्स कुमारसमास्म अतिए धम्म मोच्चा णिसम्म हट्ठतुद्वनावहियए उट्ठाए उट्ठेत्ति के सिक मारसमण तिक्खत्तो यायादिण पयाहिण वददू णमसति वदित्ता णमसित्ताएव Mauritaण भते णिग्गघेपावणे पत्तियामिग्रा भते णिग्गवे पायावर्णे रोएमिया भते णिग्गथपावयण अभूमिण भते एवमेय भते तरमेय भते अवितमेव भते असदिहमेव भते इच्छिवपडिच्छियमेय भते सव्वे एप्सम सेजह तुमेवयइत्तिक्कट्टू वद णमसति एव वयासी जागा देवाप्पियागा अतिए वहवे उग्गा भोगा जावं इज्मा पुत्ता चित्वररिगण चिच्चासुवरण एवं धण धणवनवाहण ४ शेषस्तुप्रागेवदर्शिता, (सहसहामी )त्यादि सहधे यस्तीत्येव प्रतिपद्येनैतन्य प्रवचन जैन शासन एव (पत्तियान) इति प्रत्यय करोम्यले ति भाव, रोचयामि करणरुचिविषयीकरोमि चिकीर्षामीतितात्पयाथ' किमुक्त भवति, अभ्युत्तिष्ठामि श्रभ्युपगच्छामीत्यर्थ, एव मैतत् यद्भवद्भि प्रतिपादित तत्तथैव भदन्ततथैतद्भदन्त यथा तत्ववृत्त्या वस्तु अवितथमेतत् भदन्त सत्यमित्यथ, असन्दिग्धमेतत भदन्त सम्यक तथ्यमेतदिति भाव, (इच्छिय पडिकियामेय भाते) इति इष्टमभिलषित प्रतिष्ट श्रभिमुख्येन सम्यक प्रतिपन्नमेतत यथायूय वदय, (चिच्चा हिरण्य) मित्यादि हिरण्यमघटित मोटा सविस्तर महापूज्यपरिपदा केसी कुमार श्रमणनद् समीपद धम्मं सामली इष सतीपपामी चित्तमाहि श्राणदा वादा नमस्कारकरी जेह दसिथकीपरिपदाचावीहूता खाइदसि ऊपराग तिहारपकी तेह चित्तसारथी सेसानइ कुमारनइ श्रमणसमीपर धर्म साभली हियय अवधारी हपसतीष पाम्यु श्रीदएनइविपद उद्दू कठीन कैसी कुमारश्रमणप्रति वणिवेला करदू प्रदक्षि यादइ वादइ नमस्कारकरण वादीन्द्र नमस्कारकरीनइ एम बील्यु सद्दद्दूइड हेपून्य निम् घयती प्रवचनसिद्धात प्रत्ययकड प्रतीति ऊपबु हेपूज्य निगु व प्रवचनप्रति रोचबुकरिवानीवाबाकरद्र है पूज्य निगु थ प्रवचनप्रति साहसुचालीचाव्यु हेपूज्यतुमोकहोइउतिमन हैपूज्यतइतिमन हे पूज्य माचूप मारु प्रवचन हेपूज्य एहमाहिकाद्रसदेहनथी हेपून्य अलिलपिङसम्यक्मकार र प मिचन हेपूज्य साच एचर्थ तेह जिम तुमेकद्दूकड इमकही वादर नमस्कारकरदू वादीनम बोल्यु निम हेदेवानुप्रिया तुम्हार समीप धणा भोगवशनी राजानइचविय इभ्य इम्यता छांडीनरुप काडीमुवर्ण एमधनरुपीयागोधूमदि हाथीघोडादि वेसरसकटादि सनांघर धान
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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