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________________ २१४ रायपसेणी । सेजियशवराया चित्तस्स सारिहिस्स त महत्य जाव पाहुड पडिक चित्त सारहि सक्कारेति सम्मागोति पडिसि रायमग्गमो गाढ वास आवास दलयति ततेासे चित्तं सारहि विसज्झित समाणो जियसत्तुस्सरपणे अ तियाउपडिणिक्खमइ जेणेव वाहरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चारघटे आसरहे तेगोव उवागच्छद्र तेगोव उवागच्छित्ता चारघट आसरह दुरुहतिर सावत्थी गयरीए मज्झ मज्झेण २ जेणेव रायमागामोगाटे आवसई तेगोव उवागच्छद्र २ तुरते तेणिगिगहद्द' रह ठवेति २ रहातो पच्चोम्भतिराहा कथवलि कम्मेकको मगल्लपायवित्तं सुइप्पबेसार मगलाइ वत्याइ पवर परिहते अणमहग्घा भरणालकिय सरीरे जिमियभतुत्तरागए वियण समाणेपुव्वावरण्ह कालसमयसि गधव्वेहि गाडएहि उवति विज्झमाणे उवगाइज्झमाणे उवलालिज्ममाणे इट्ठ े सहफरिस्स रसरूवगध पचविहे माणुस्सर कामभोए पव्वणुभवमाणे विहरति तेण कालेण तेा समएण पासावच्चिच्झे केसी गाम कुमार सम ( केसीयाम कुमारसमयेजादू सम्पराये) इत्यादि । जातिसम्पन्न इति उत्तममायुधप्रहरण' । नसाखदेद्र राजमागृद्रराउ वासनदूअर्ध श्रावास कतारउदेदू तिहारपछी तेह चित्र सारथी विमजउ थकड जितसवना रायना समीपथकी नीकलइ नीकलीनडू जिहां बाहिरलीबसवानी सभा जिहा चतुध घोडवहिलि तिहा जादू तिहा जदूनई चतुर्धट अश्वरथष्ट्र चडहनद्र चडीनद्र Hraat नगरीन्द्र माहिर जिहा राजमागइ राउ यावास तिहां जादू जडून घोडाप्रति गृहद्र रथथापथापीनदू रथथकी उत्तरद्र स्नानकीधु घरनादेवतापूजा कीर कौतुकमधीतिनका दिमगलदधिदुर्वादितेहाज प्रायचित्तदुखविघातवान अर्थ राजसभाप्रवे सायोग्यशुद्धमविल मगलो पणवर्जित वस्त्र प्रधान पहिरअल्पभारघण्ड मूलएहवाचाभरणतणकरी अलकृतासा भयमान सरीरजेहवु निमणपाणी करपाचनतर पिनिश्चर एचवइधकटू हूत पाइला प्रहरनद्र समदूअवसरइ गधवपुरुप नाटकीइसगीपनाचतटइथक भलागीत गाइत इथक बाछितार्थपूरतइयकद्रहूतद् मनोभीष्ट शब्द स्पर्श रस रूप गध एहपाचप्रकार मनुध्व सबंधि काम hiraramunafधविपयते कामकहायइतेनाटक ज्ञाभत्सरी रसवधिविषयतेभोगकहिय भोग बतৱथकच विचरछद्र तेणद्रकालि तेणइसमय पार्श्वनाथनाचपत्यसतानाया केसी नाम कुमा
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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