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________________ रायपसेणी। तामिण मणिठियाग उरि पत्तेव र सीहासणे परणतं सीदासण . पपणत्तो सपरिवारो तसिगा पेत्याघरमडवाया उवरि अहमगलगा भाया छत्ताई छत्ता तेसिण पेत्याघरमडवाणा पुरतो पत्ते व २ मणि पेढियाउ पत्ताउ ततोगा मणिपढियाउ सोन्नस जोयगाइ वाह ल्लेण सबमणिमयाउ अत्याउ जाव पडिरुवाउ तासिण मगिा पेढिवागा उवरि पत्त व २ घूमेपगणतं तेगा घूमा सोलस जोवणाइ अायामविस्वमेणा सादरंगाइ सोनस जोयणाइ उच्चत्तेगा सेवाखक ककुददगरय अवम मडिय फेगा पुज सगिागासा सव्वरवणामया अत्था जाव पडिरुवा तेसिण घूभाया उवरि अट्ठमगलगाझवा छत्ता मला "मणिमा प्रत्याउ” इत्यादि विशेपणजात प्रागिव तासा च मणिपीठिकानामुपरि प्रत्येक प्रत्येक सिहासन प्रन्नप्त तपा सिहासनाना वर्णन परिवारश्च पावसाच्या तपा व प्रचामण्डपानासुपरि प्रप्टावष्टो मगलकानि वइब कृष्णचामरध्वना इत्यादि प्राग्वत । तथा प्रचागृहमपडपाना पुरत' प्रत्येकर मविपीठिका प्रनप्ता। ताश्च मपिपीठिका' प्रत्येक पोडययोजनान्यायामविष्कम्भाभ्यामप्टीयोजनानि वाहुल्येन सर्वात्मना मणिमय्य' । अच्छा इत्यादि विशेषण कदम्बक प्राग्वत् । तासां च मणिपीठिकानामुपरि प्रत्येक २ चैत्यस्तूप प्रजन'। तेच चैत्यस्तूपा' पौड़गयोजनान्यायामविष्कामाभ्या सातिरकाणि पौडययोजनान्यूह मुच्चस्त्वेन गप्स कत्यादि तणन सुगम । तपा च चैत्यस्तुपा तामुपयष्टावप्टी स्वस्तिकादीनि मालकानि "जारसहस्सपत्तहत्यगा” इति यावत्करणात् "तसिदय धूभाण उणि वह किए चामरम्भूया नावमुक्किल्लचामरभूया पछा सपहा रूप्पपट्टवरदण्डाजलजामलगन्धीसुरूवापासादया जावपतिरूवा तैमिय थूभायउप्पिं वह छत्ताइ छत्तापडागा धपटाचगलाउप्पलहत्यमा नावसय महमपत्तहत्यगा सबरयवामया ज्ञावपडिरवा" इति एतच्च समस्त प्राग्वत (तसिण)मित्यादि। जपूनछ भलङ रूपछि तेहनद मम्पिपीठिकानद ऊपरि प्रत्येकदर सिंहासण कधउ सिहामन नउवठक परिवारसहितकदिर तेइन प्रेक्षाधर मडपण्ड झपरि पाठ मगलीक ध्वजा इन क्रपरि छवकावट तेहनद प्रचाधर मडपन आगलि प्रत्येक मणिपीठिका कही तेह मपि पीठिका मोलद्र यीजन जाडपण समस्त मणिमय निर्मलछद घठारीमठागेन भलउ रूपद तहनदू मणिपीठिकानद अपरि प्रत्तेकदर धूभकधर तेह धूम सील वीजन लांबपणड पिडून पबह भाभरा सील योजन ऊ चपण, स्वतक संखधकरत्नकूकदफूल पोपीनाकयीपा अमृत मध्यइ तेहनदाफीग्पना पुजरासि तेहमरीपाऊजला सवरत्नमय निमल पठारामठारा तिच
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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