SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * 5 रायपणी । पासादीया ४ सभाएण सुहम्माए विदिसि तउदारा पण्णत्ता तजहा पुरथिमेण दाहिणेोण उत्तरेण तेरा दारा सोलस जोयगा उठ उच्चत्तेण श्रट्टजोवणार विक्खभेगा तावाइयचेव पवेसण सेयावर कणगधूभियागा जाववणमालाउ तेसिण दाराण उवरि श्रमग लगा याकत्ता तेसिण दाराण पुरतोंपत्तेय सुहमडवे पण्णत्तं तेण सुमडवा एग जोयगासय श्रायामेण पण्णास जोयणा' विक्खभेा सायगा सोलस जोयणाइ उठ उच्चत्तेण वगणउसभाए सरि १५१ मलय भत्तिचित्ता, खभुग्गयवरवेइयाभिगमा विज्झाहरजमलजुगलजन्तजुत्ताविव अच्चीसहस्स मालिणीयावस्स कलियाभिसिमीणामिन्भिसमीयावर कल्लीययलेसा सुहासा सस्सिरीय रूवा कञ्चणमग्रियण धूभियागा यायाविह पञ्चवरण घण्टापडागपडिमडियग्गसिहराघवला मरीकवगचिणिमयन्तीला उल्होइयमहिया । गोसीससरस सुरभिरत्तचन्दपदवरदियण पञ्चगुलितला उपचिय चन्दयकलसा चन्द्रावरसुकय तौरणपडिदुवार देस भागा श्रासतोस त्तविउलageग्वारिय मल्लदामकलावा पञ्चवण्णसरस सुरभिमुक्कपुष्पपुञ्जीवयारकलिया। कालागुरुपवर कुन्दरुक्क तुरुक्कभूवदन्भन्तमघमषेन्त गन्धुड, याभिरामा सुगन्धवरगन्धिया गन्धवट्टि भूया अच्छरगण सब्वविक्किणा । दिव्वतुड़ियसहसम्पादिया सव्वरययामया अत्था जावपडिरूना" इति प्राग्वत् ( सभाषण) मित्यादि, सभायाश्व सुधर्माया विदिभिनिषु दिच, एकैकस्या दिशि एकैकधारभावेन श्रीसिद्दाराणि प्रज्ञप्तानि तद्यथा एक पूर्वस्यामेक दक्षिणस्यामिक सुत्तरस्या तानि च शरागि प्रत्येक पोडशयोजनानि कद्रमुच्वेस्वेन अप्टीयोजनानि विष्कम्भत', (तावाइयचे) वेति तावन्त्ये चाटयोजनानीति भाव, प्रवेशेन (सेयावर कणगधूभिया) इत्यादि प्रागुक्तद्दारवणन तदेव तावद्दव्य यावदनमाला इति । तेपा द्वाराया ger' प्रत्येक सुखमण्डप प्रप्तः । सुखमण्डपा एक योजनमतमायामत' पञ्चशितयोजनानि विष्कम्भत. सातिरेकाणि पोडशयोजनान्यूह मुच्चैवेव एतेषामपि खम्भस्य सरियविवा" इत्यादि वर्णन सुघमासमाइव निरवशेष द्रष्टव्यम् । तेइसइद्रतचागलितीरानप्रधान पूतलीयइनिहा यावत् शब्दद्रयानविमाननपरिसमान उदय क खिंड अप्सरगणइ व्याप्तकर चित्तनिथ भन्नकरटुइइजी बायोग्वकद्र समान सुधर्मांन विहू दस afदार कह्या कहद्रकई पूर्व दचिणद्र उत्तरनद्र तेह द्वार सोलर योजन ऊ च ऊ चपय आठयोजन पडूलपण तेतलइनप्रवेस पतल पाठयोजन प्रवेशपत्र वितरितेह प्रधान कमल सहितथूमिका सिखरीदा जावतमब्दपूर्व जेहवादारराव्या वन मालासहिततिमज्ञएहापणिजाणवर्तनद्र द्वार ऊपरि आउर मंगलिक ध्वजा कनकहिवा
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy