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________________ १०० 1 रायपसेणी । + महावीर विक्खत्तो थावारिण' पयाहिण करेद्र वदद्र णमंसति वदित्ता नमसित्ता नियगपरिवालसिद्ध सपवुिडे तमेव दिव्व जाणे विमाण दुरुहिता जामेवदिस पाउज्भूया तामेवदिसपडिगया भतेति भगव गोयमे समय भगव महावीर वदर नमसति २ एववयासी मूरियाभस्सा भने देवस्स एसा दिव्वा देवट्ठी दिव्वा देवजुत्ती दिव्वे देवाणुभावे कहिगतेकहि यणुपविट्ठे गोयमा सरीर गते सरीर अणु पविट्ठ े सेकेणट्टेण भते एव वूल्वेद सरीर गते सरीर श्रणुपविट्ठे गोवमा सेजहाणामए कुटागारसाने सिया दुहतो गुत्तलित्ता गुत्तदुवारा उपागत्य च श्रम विकृत्व स्वीन् वारान् पादचिप्रदचिणीकृत्य वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमयित्वा एव मवादीत् । ( सूरियाभस्सय भन्ते) इत्यादि (करिष्याए) इतेक्कगत | अन्तरप्रदेधा भावेपि दृष्ट यथाभित्ती गता धूलिरिति एपोपि दिव्यानुभावो यद्येव क्वचित् प्रत्यासन्न प्रदेश तस्यादत दृश्येत न चासी दृश्यन्ते ततो भूय पृच्छति । (कषि प्रणुप्पवि) इति क्वानुप्रविष्ट क्वानुलीन इति भाव | भगवानाह गौतमशरीर गत शरीरमनुप्रविष्ट पुन पृच्छति (संकेबई स) मित्यादि । अथ केनार्थेन केन हेतुनामदन्तएव मुच्यते शरीर गत शरीरमनुप्रविष्टी भगवानाह गौतम (सेजडानामए) इत्यादि कूट श्यैव पर्वतशिखरस्यैवाकारी यस्या सा कूटाकारा यस्या उपरि चाच्छादन शिखराकार सा कूटाकारेति भाव' । कूटाकारा चासो शाला च कूटाकार शाला यदिवा कूटाकारेण शिखराकृत्योपलचिता माला कूटाकार मालायास्यात् (दुइतीगुलिप्ता) इति बहरतच गोमयादिना लिप्ता बहि प्राकारवृत्ता गुप्तद्दारा द्वारस्थगनात् यदि गुप्तागुप्तद्वारा कैवा चित् द्वारा स्थगितत्वा केपाञ्विस्वास्थगितत्वादिति निवाता वायोरपवेशात् । किल महत् गृह निवात प्रायो न भवति । तत यह निवातगम्भीरानिवाता सती विशाला इत्यथ । तत रकी तेहवी सूर्याभदेव श्रमण भगवत महावीरप्रति वणिवेला दक्षिणपासाथीमाडी प्रदक्षिणा कर बादर नमस्कारकर वादीनइ नमस्कारकरीन पोतानइपरिवारसाथ परवरुडूयकुं तेहीज प्रधान यात्र विमान कइमीरइ जेहदसियी मगटहूउपव्युहू तेहिदिसि प्रतिकपराठज्यु हे पूज्य एडवो संबोधनकरी भगवत गौतमस्वामि श्रमय भगवंत महावीरमति बादर नमस्कारकरइ नमस्कार करीन इमबोलतुहूल मूर्याभनी हे पूज्यदेवनी एह प्रधान देवनिवद्धि प्रधान देवनीज्जूतिकाति प्रधानदेवनुसामर्थपणु कद्दू किहा प्रवेशकीधु भगवतक इहे गौतम सरीरमाहि गर्यो सरीरमाि प्रवेशकीधु तेहकेद्रकारण हे पूज्यद्रमकडीइछद्र सरीरमाहि गयु सरीरमाहिप्रवेशकीधर भगवतकš्द्रईगौतम तह यथादृष्टांत कूटनइयाकरइसालीमोटीत्यथ रूपा तुप बेकटकरी
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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