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वाचार्य्याय न तु कलाचार्थाय । धश्राचार्यत्वमेव कथमित्यत चार धोवदेवस्य धर्मोपदेखवायेति । तत्यगयंति तत्र ग्रामान्तरे स्थितम् । इगपति वन्दे । बच्चादेव मिलतमा पासमेत पश्यति समिति सभगवानिति व पूर्ति करवा प्रति हेतो वंदति पूर्वोस्था स्तोति नमस्यति विरोनमनेन प्रणमति । पट्टतरससष्ठ पोदापति महोत्तर वच स्वतस्य तुटिदानं ददाति मेोति तथायके मांडतिकानां प्रतिदान महवयोमान सुख यह वित्तो सुवनस्य पारम भट्ट र समहमाई तावश्मचिय कोडोपीरंदाय तु चषि रायचेय पार्थ नवर स्वय तु सवादिति मंडलिया उपस्या पौरंदाच समसहस्रत्ति र पुन सदटोत्तरसमान सुतमिति वद्य न विरोध उच्यते चादिगरा तित्यगर भाव स पाविसकामस्य ममषम्मारिया धम्मोपदेसगा वदामिय भगव त तत्यगय इसे पास मे भगवं तत्यगए इहाय तिकड बंदति खमसति वदिप्ता यमसित्ता सौहामणवरगए पुरत्याभिमुझे निमोचर निमोरत्ता तस्म पवित्तित्राउ बस्स तर मया पौतिदाय दलयति दक्षता सवारेति
होयो चवचनमाधववार श्रमवतपनावरचचार भगवतमहिमावंत महावोरकर्मयतुमा औपचहारतेन श्रुतध में मौघादिना कर हारते हतुषि श्रीघनीयापनानावरणहारतेडनर वावशब्दव को बोमाइयोस आथिवा जेहनिमोच जारवा भीवांदादर से मोचमा स ते आताबा का दिपर भगव तवदर मोतेवन मातराधर्माचा संधमंसबंधी प्राचार्यं विचि धर्म समभाव्यतते हनर धमंत्रोवीतरागन्ते हमा उपदेशककधफ वदिल हू हायजी उस्तुतिकरण भगवंतम चिमावं तमवि तेभमवततिहांति चिपामिरामति राजसभानविये पासदेपनष्टिरोम मे सुझन भगवंत