________________
तथा पाठान्तरपये प्रतिसेय इति प्रतिश्रेष प्रत्यन्तप्रयस्य । जनमशव से वरय दोसव लियस रोरनिश्वसेवे याति च 'गति चेति यज्ञ' स्वत्प प्रमद्यापमेव चचासो मणयेति वक्षमशः स च च दुतिलकादिक स्वस्थ मनेदो रजय रेषु तेषां मी दोपो मालिन्यकरचं तेन पति गरीरं यस्य स तथा वासावर निरुपपचेति मधारय । छायापोबोइयममगे जायवा दोमना उद्योतित प्रकाशित अङ्गमय । वर्षानिदिय सुनवलमस्य तुक्षयकूडागारभिभपिडियम्बसिरर घननिचित, सत्य निविष्टं घनवाश्रयो घमवत् निविष्ट सुबह सुष्ठखायुवह सचयोव्रतं मगस्तलचण कूटस्य पर्वतमियर पाकारेच संखानेन निर्भ सहयं यत्तत्तथा पिंडिजेव पापापमिडिया सुष्णीम या तत्तथा तदेवंविधं गिरो यस्य स घन निविष्ठादिविशेयरिस्ट । सामतियोंषण निचियम्फोडिय मिठवि समपसत्य कुमठ का सुगंध दर भमोभग भिंगनोचवा जल पद्विभमरग पनि
नामागंधद्रव्यते सपनिमासन उडवगंधवदनप
भोजोइयगमगे घवनिविय सुबह क्वायक डागारनिभपिडिभग्गसिरए सामलिमघणनिचिय प्फोडियमिट वसन्तमवंत निरात रोगरहित उत्तमकइतोषत्प्रमस्वरू मेध पतिश्वेत दूधपरिपठषचतच निरुपम पमारहितपसक• मांस जेहन नहते बेयोड़ प्रयासजतरह मझते वे दोडिए जतरण कसं कदुष्ट तिवादिचपरमेवत रजरेश्च तथादोपची रौप्रसुपते बइव निंतर चितर गरीरहनछ निरूपले पक्रर्मक पिपोसे पकस उनागर छायाकांतिते पर समूचाज्यस अंगोपांगण निविड़यो मय घनोपरि सुमहच चोपेत ममस्तच बोकूड़ागारकूट पर्वतमा पाकार भितसरोपु पिंडियपापापविडोमो मिस्त कमलहमहवचसिरमा सोमलोचन कहत फल व निषियप्रतिनिविड़ते फोडिय फाडाते हो परमदुस हाटा विसद