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________________ Pe पन्द्रम एव भवति पव्वत्तत्ति मनः पयस्यापयतस्य तदन्यस्व मगोबधमतोऽपि मनसो प्रभाव एवेति पर्यासस्येत्यत स च मध्यमादि मनोमोगोऽपि जादिवाच महजोगिस्कृति वपन्यसनोयोगवत' हिन्ति भो यो मनोयोग इति गम्यते बघम्यमनोयोगसमानो यो न भवतोष्यव मनोयोगय मनोव्यापि तयापारयेति घन्यम भी योगाधोभागवतं स्वमेव दशयवाह भस क्षेत्रगुणपरिहरति अस स्यातमुपेन परिहोबो य स तथा बन्धमनोयोग यासह यमागमाय मनोयोगं निवयहि तत कमद्यानया मायया समर से नियन्वानः सष्य मनोयोग निरुपति प यह समठ्ठ े से पुष्वामेवस विसपचिदिवा पात्तगा महमजोगवा देठ्ठा घसखेळ गुणपरिहौण पढमनणगजोगनि रूमति तयाणतरवणं बिंदियापन्नत्तगा नहखनोगमहट्ठा असखेन गुणपरिहो वितियषद्जोग निरूमति तयानतर वर्ष सुखमा पणगबोवस्त अपतगस्स वरसगजोगपास सेजगुणपरिक्षण तईयकायभोग मोटर जोवप्रसुपपतिष योगमममतिपंचेंद्रिययोग पर्यासिकगे पूरी हमस जघन्ययोयोग मनशु व्यापारको ठाडे रचो भसंस्खात गुपपतिमय होचो पहलप्रथमममम भो योगष्यापार धरसवर तिवारपछोवती केंद्रिय व पर्याप्ति पान व घोडघोद्रव च नमोनम्या पारतेइयको हेट पोहचघो सख्यातगुपकरोषण होसपोथोडी दोषवचनन उयोगव्या पार की रूप तिवारको सूक्ष्ममानु नौ शिबू सिमोवन पर्वातिभिड कारोपधान जघन्य स गतथिकोनार हठकाया नमो योगव्यापार | पोहोचत्र पसंख्यातगुणकारी धन्य पोडोघो तौत्रकायामरौरन उ मोमम्य (पार ते घर संवर तेजोवप पत्र पूर्वोपरि पार करोम पवि
SR No.007378
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1896
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size9 MB
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