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________________ म तात्यादि भमन्त मगन्तायविषयत्वात् पयुत्तर सर्वोत्तमस्वात् निर्माघात कटकुटादिभिरपतिपतत्वात् निरावरणं प्रायिकत्वात् कामाचात् प्रतिपूर्व सवगसमन्वितत्वात् केवलवरथासत्ति केवल मसचाय अतएव वरं भान व दर्शन पेति ज्ञानदर्शन तत मादाभ्यां धारय na मार्न विशेषावबोधरूपमिति दर्शन सामान्यावबोधरूपमिति होसबाश्रोत्ति जन्मकममनानि नियापोति पव्यत्रिति सेयंभविस्मर पगारेभगवते इरियासमिति बावगुप्तवंग्भयारी तमभगवंत एते विहारेण विश्व रमाणस्स अश्थते अणुत्तरे विश्वाधार निरावरणे कसिणे परिपु केवलवर यायदं मये समुप्पन्न हिति तते से पर केवल वासाइ केवले परियागंपाठपि हिति केवलिपरियागपाठणित्ता मासियापसलेहणाए हिवर प्रतिमहोबधादस्सर अच्मारसानुभगवत पूर्यामागमविषठ पायधारी ते जोर जानभन्दा प्रोपराइयोस गुमि मन तधरपचार भगवतमहिमा तठप्रतिसाद पूर्वीलविचारभाधार समिति गुतिप्रसुपतेरो विचरतान अमतार्धन जायपथावबोधत प्रतुत्तर सर्व आममहिसमयको पिरियणादिवरजेप्रानपसाहसाची मिरावर आवरकरहितधा यकपणाचको वयसमस्त पर्व सहितावको परिपृसं समस्तभंग करो सहित श्रीवसंपूर्ववरप्रधान विशेष प्रववोपचारक दर्शन सामान्यधवबोधकारका ज्ञानदर्शनसम्यगण पक्षिष्म धूपामिस्टर तिबारपछोह प्रतिज्ञामा वेवसो केवलज्ञानमपाधरणहार बहुदूषणावर सथगो वेदपि treasurentन पालितुभवस्य वेषीसब धिभोपर्यांय वस्वन भोका समान पालीम एक मसाला यो लेपनातपत्र करीमरोरपातल HTT
SR No.007378
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1896
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size9 MB
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