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________________ महाजनों का अधिक परिचय होने के कारण भोजकों में भाटपने का बहुतसा कुरिवाज मिट गया परन्तु भाटों में जो डिंगल' कविता अर्थात् देनेवालों के गुण और नहीं देनेवालों के अतिशय अवगुणवाद बोलने के संस्कार थे वे जैसे के वसे बने रहे। इसका मुख्य कारण मांगन वृत्ति ही थी। ढोलियों और भोजकों के आपस में कई अर्सा तक खूब द्वंद्वत्ता अर्थात् परस्पर विरोध चलता रहा। इसका कारण ढोल बजाई के रूपये ढोली लेते थे वह भोजक लेने लग गये, परन्तु महाजन संघ की उदारताने इस झगड़े को मिटा दिया कारण ढोलियों के लिये और कई प्रकार की आमन्द के मार्ग खोल दिये। भोजकोंने वाममागियों का धर्म त्याग दिया और जैनों की चाकरी करना स्वीकार कर लिया इस पर वाममार्गियों के नेताओंने शेष रहे हुए अन्य स्थानोंके भाटों को बहकाये कि वे लोग भोजकों के साथ न्याति सम्बन्ध तोड़ दियो अर्थात् न्याति से बाहर कर दिया, परन्तु भोजकों पर महाजन संघ का जबर्दस्त हाथ होने से उनका कुछ भी जोर न चल सका । आखिर भोजकों का परिवार बढ जाने से एक स्वतंत्र जाति बन गई और आगे चल कर कई गौत्र भी स्थापन हो गये। वीर निर्वाण संवत् ३७३ वर्षे उपकेशपुर नगर में ग्रन्थी. १. देखो पत्रिका नं. ४ २. चामुंडा देवी महावीर प्रभुकी मूर्ति गाय का दूध और वेलू रेती से बना रही थी और ६ मास में सर्वाङ्ग सुन्दराकार मूर्ति बन जाना पहली से सूचित भी कर दिया था पर भवितव्यता के वशीभूत हो श्री संघने सात दिन पहला मूर्ति निकाल ली ईस कारण से मूर्ति के हृदयस्थल पर निंबु फल सदृश दो गांढे रह गई । वीर संवत ३७३ में किसी अज्ञान व्यक्तिने एक सुतार को लाकर वे गांठों छिदवाना
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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