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खाने में सेवग भ्रष्ट क्यों नहीं होते हैं ? यदि सेबगनियों के हाथकी कच्ची रसोई जीमने में सेवग भ्रष्ट नहीं होते हैं तो ओसवालों के वहां की कच्ची रसोई जीमने में सेवग कैसे भ्रष्ट होजाते हैं ? यदि ऐसे भ्रष्ट होते हो तो गोडवाड सिवाणची, जालोरी और थली वगरह के सेवग आजपर्यन्त ओसवालों के वहां कच्ची रसोई जीमते हैं और उन सेवगों के साथ वे लोग भोजन व्यवहार करते हैं कि जो ओसवालों के वहां कच्ची रसोई नहीं खाते हैं । समझ में नहीं आता है ये लोग ऐसी कारवाई क्यों करते हैं ? खेर ! इस विषय को अधिक लिखने का अब कारण ही नहीं रहा है जो कि ओसवाल सेवगों के साथ सम्बन्ध ही रखना नहीं चाहते हैं ।
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( १७ ) सेवगों ! तुमारी बदनीति के कारण जहां तहां ओसवाल तुमारा तिरस्कार करते हैं और तुम मुर्दा के माफिक सहन कर रहे हो । क्या तुम्हारे अन्दर कुछ भी जीवन का खून रहा है ? यदि रहा हो तो अपनी समाज का संगठन कर के या तो ओसवालों के साथ पूर्व की भांति सम्बन्ध रखो या सर्वथा तोड दो । सब से पहला तो स्वतंत्र रहना ही इस जमाने में सच्चा सुख है और पराधीनता दुःखों का मूल है ।
सेवगों ! तुमारे कारण ओसवालों को बडा भारी नुक शान होता है। इतना होने पर भी तुम को ऐसा लाभ भी नहीं नहीं है। मांग खाने की बजाय काम कर के खाना उभयलोक में फायदामंद है | चेतो ! सावधान हो जाईये ! अभी समय हाथ में है । ओसवालों प्रति भी हम इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि आप लोगोंने सेवगसमाज का जीवन बरबाद कर दिया है, मंगते बना दिये हैं । अब तो इन को रजा दो कि वे अपना जीवन सुख और स्वतंत्रता से गुजारें । अधिष्ठाकि सब को सद्बुद्धि प्रधान करें ।