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मुख्य कारण नाई, ढोली और ब्राह्मण कहते हैं कि हम तो हमारा हक्क बजा कर पैसे लेते हैं पर यह भाट तो गुपचुप ही हजारों रुपये ले जाते हैं । इस हालत में ओसवालो की पोल में यह कवित कहना शरू कर दिया । जप से हमारा लेख श्रोसवाल समाजने पढ़ा और उन्हों को मेरी बात सोलह श्राना सत्य मालुम हुई तब से पूर्वाक्त छप्पया बोलनो बन्ध करवा दिया और सेवगों को साफ कह दिया कि जैसे पूर्व जमाने में तुम कहेते थे कि “ पार्श्वनाथ उदय करो, भगवन् सहाय करो " वैसे ही कहा करो। इस में उभय पक्ष का कल्याण है।
__अन्त में हम हमारे ओसवाल भाईयों से नम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि जब सेवगलोग श्राप के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते हैं तो आप का भी कर्तव्य है कि आप भी सेवगों के साथ ऐसा ही व्यवहार रखे जैसे कि
(१) यदि सेवग आप को कहें कि हम ब्राह्मण हैं तो उत्तर में आप भी साफ कह दो कि हमारे ब्राह्मणों के साथ नियमित प्रतिबन्ध नहीं है कि तुम लोग हमारे पिच्छे फिरतेघूमते रहो । जैसे हम भारतीय ब्राह्मणों के साथ व्यवहार रखते हैं ऐसा तुमारे साथ भी रखेंगे। फिर लग्न-शादीओसर-मोसर और प्रतिष्ठादि कार्यों में लाखों रूपये देने की क्या जरूरत है। वह द्रव्य देशहित में क्यों नहीं लगाया जाय ?
(२) भाटों को। जैन धर्म पालन करना, तथा श्री संघ की टहल चाकरी और मन्दिरों वह उपासरों की सेवाभक्ति करने की शर्त पर हो लाखों करोड़ों रुपये दिये जाते हैं, यदि वे लोग पूर्वोक्त कार्य करने से इन्कार हैं तो प्रत्येक वर्ष इतनी रकम देना तो मानो एक सर्प को दूध पिला करके विषवृद्धि ही करना है।