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________________ १५ ( २५ ) प्रतिष्टा, उपधान, उजमणा और अठाई महोत्सवो में भी आजकल सेवक लोग एकत्र होजाते है और वे शोभार्थी प्रोसवाल उन निंदकों को सीख विदा देकर मिथ्यात्व का पोषण करते हैं । सेवक कहते हैं कि हम ब्राह्मण हैं तो फिर उनको हजारों रूपये देकर सर्प को दूध पीलाने में क्या लाभ हैं ? इसकों विचारों । ओसवालों के देखादेखो पोरवाल भी डूबने को तैयार हुए हैं पर पोरवालो को सोचना चाहिये कि सेवकों के साथ हमारा क्या सम्बन्ध हैं ? ओसवालों के साथ सम्बन्ध था वे तो जहां तहां इस शक्रान्तको दूर करना चाहते हैं इस हालत में पोरवाल इन निंदको को क्यों अपनाने को तैयार होते है ? इनके अलावा और भी कई प्रकार के अत्याचार करते है थोडीसी कंसर पड जाने पर यह निंदक अनेक प्रकार के अवगुणबाद बोलते हैं, बूरे कवित बनाते हैं, भगवे कपडे करते हैं, पुतला बना के जलाते हैं, ओसवालों का अनिष्ट होना चाहते हैं क्या यह कंगला या नानकशाहीपना नहीं ? फिर भी सेवक कहेते है कि हम पुरोहित या ब्राह्मण है पर किसी भारतीय ब्राह्मण या पुरोहितोने स्वप्न में भी ऐसा नीच कृत्य किया हैं क्यो कि वे आर्य है, सेवक अनार्य हैं और यह नीच कृत्य अनार्य ही करते हैं । ओसवालों ! अब इन निंदको के धतींग से डरने की आप को आवश्यकता नहीं हैं । इनके पास कुच्छ भी करामात नही हैं । तुम्हारा बाल भी का कर नहीं शकते हैं। यदि फेल करे तो पुलिस का थाना बतला दो । अहो ओसवाल भूपालो ! कहाँ तक निद्रा देवी की गोद में लेटे रहोगे। तुम्हारे जाति भाई इन नीच भाटों से कितने दुःख सहन करते है ? कितना कष्ट उठाते है ? इस हालत में
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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