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________________ वैसा ही इनके साथ रखना चाहिये । लग्न-शादो में लाखों रुपये देने का अर्थ क्या ? अर्थात् सेवकों को किसी प्रकार एक पाई भी नहीं देनी चाहिये । यदि कोई अज्ञ सजन सेवकों की हिमायती करता हा तो उनको सेवकों की लिखी किताबें पढना चाहिये कि उन निंदकोंने जैन धर्म वह ओसवालों की कैसी निंदा लिखी है। (२२) गोडवाड, जालौरी, सिवाणवी और थली प्रान्त के सेवक ओसवालों के वहां कच्ची रसोई जीमते हैं जिन्हों को कई सेवक हलके और नीच समझते हुए भी उन्हों के साथ भोजन व्यवहार करते हैं ऐसे कृतघ्नी सेवकों को देने की बजाय गायों और कुत्तों को डालना अच्छा है । (२३) जैनों के सिवाय अन्य जातियों से याचना करने में सेवक कहते थे कि एक हाथ तो ओसवालों के नीचे दूसरा गुदा पक्षालन करने को है। तीसरा हाथ कुदरतने नहीं दिया कि दूसरों के नीचे मांडे परन्तु धर्महार धन इच्छक सेवक अब हरेक जाति के नीचे हाथ मंडने को तैयार है। (२४) गामडों के या दक्षिण बरार के ओसवालों को सेवक इतनी तकलीफ देते हैं कि विवाह आदि या आसरमोसर में मेहमान १०० आते हैं तब सेवक ५००-७०० एकडे हो जाते हैं । वे खाने की बजाय लडू चोरके अधिक ले जाते है' और घरधणी को इतनी तकलीफ देते है कि उनके दुःख के मारे वे गाम २ जाकर घर बैठे सेवकों को त्याग चुकाते है । अरे ओसवालों ! अब भी आप घोर निद्रा में सुते ही रहोगे ? इस कर्तव्यी त्याग को बन्ध करो और वह ही द्रव्य देशहित में व्यय करो।
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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