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________________ रोटी शाक तोरू भीण्डी, काकडी, बौर, कोला आदि तुच्छ वस्तुओं भी अन्य देवों के मुवाफिक वीतराग के मन्दिर में चढ़ाया करते हैं। यह भक्ति नहीं पर महान् कर्मबन्ध का कारण है। (१५) भारतीय ब्राह्मण श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को उनके यजमानों के राखी बांधते हैं। उनके देखादेखी सेवक लोग भी जैनीयों के राखी बांधना शुरू कर दिया है और अनभिज्ञ लोक बन्धाय भी लेते हैं। यह कितना अन्धेर और अज्ञानता! जैनों में न तो राखी का त्यौर है और न राखी बन्धानो चाहिये। कई धूर्त सेवक तो श्रावण मास लागते ही गामड़ों में जाकर राक्खी का नाम से बिचारा भद्रिक ओसवालों को ठगबाजी कर लूट लाते हैं । ओसवालों को चाहिये कि वे सेवकों से राखी नहीं बंधावे । (१६) गामड़ों के भोले आसवाल तथा दक्षिण बरारादि के.कितनेक अनभिज्ञ लोग सेवकों को" पगे लागणा" भी करते हैं कि वास्तव में सेवक ओसवालों के मंगते हैं। इस लिये अब पगे लागना बिलकुल नहीं करना चाहिये । (१७) भाट और ढोलियों के चिड़ाने से सेवकोंने करीबन् १५० वर्षों से लग्न-शादी जैसे महा मंगलिक कार्य में आशीष के नाम पर एक छप्पया बोलते है जिस में बार बार 'तीन तेरह तेतीसा' बोलते । यह आशीष नहीं पर दुराशीष है । वास्तव में ओसवालों की तोन तेरह और तेतीसा कराने में यह छप्पय ही कारणभूत है। फिर भी ओसवालों को इस बातका विचार ही क्यो आता है ? छप्पया हम आगे के पृष्ठों पर लिख देंगे। . (१८) जैन मन्दिर की चाबियों सेवकों के पास रहतो
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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