SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किसी ब्राह्मणों के साथ नियमित सम्बन्ध नहीं रखा; उन के संस्कारादि सब क्रिया काण्ड निगमवादी जैन ही करते थे। महाजनों की उदारता जगप्रसिद्ध है । महाजनोंने सेवगों को खूब अपनाया यहाँ तककि ढोल बजाई के पांच-सात रुपये दिये जाते थे वह सेकड़ों नहीं पर हजारों तक देने लगे । इतना ही नहीं पर लग्न-शादियों को सीख विदा में ऊंट, घोडा, गायों और सोना के कड़ा कण्ठी प्रदान करने में तनक भी संकोच नहीं किया । परस्पर वाद और मान ठकुराईने देने की हद तक नहीं रहने दी। यह कहना भी अतिशय युक्ति न होगा कि अन्योन्यो जातियों के मंगतों से महाजनों के मंगते (सेवग) कई गुने चढ बढ के थे । इसका खास कारण महाजन संघ की अमर्यादित उदारता ही थी। प्रत्येक पदार्थ की मर्यादा होती है पर महाजनों के उदारता की मर्यादा नहीं थी। वे सेवगों को मकान बनाके देना तो क्या पर ग्राम आदि भूमितक भी 'बक्सीस कर देते थे, तथापि कृतघ्नी सेवग महाजनों का प्रमाद व बैदरकारी देख जो प्रारंभ में शर्ते थी उनमें बहुतसा परावर्तन करदिया, इतना ही नहीं पर कई नयि २ रुढियों दाखल कर महाजनों को अनेक प्रकारसे नुकशान भी पहुँचाया, जिसका संक्षिप्त उल्लेख कर हमारे कुम्भकरणी घौर निद्रा में सुते हुए ओसवाल भाईयों को जागृत करना हम हमारा कर्तव्य समझते हैं। (१) ओसवालों के घरों में सेवगों को कांसो को थाली जीमने को नहीं दी जाती थी। अब धीरे २ कांसी की थाली में जोमने लग गये हैं।
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy