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( ८ )
তুমি দেখ হে জিনেন্দ্ৰ, দেখিলে পাতক পলায়,
প্রফুল্ল হল কায়।
সিংহাসন ছত্র আছে, চামর আছে কোটা ৷ দিব্য দেহ কেমন আছে, কিবা শোভায় কোটা ৷
তুমি দেখ হে......... ক্ৰোধ, মান, মায়া, লোভ মধ্যে কিছু নাহি । রাগ, দ্বেষ, মোহ নাহি, এমন গোসাঞি ॥ তুমি........... কেমন শান্ত মূৰ্ত্তি বটে, বলে সকল ভায়া ।
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কেবলীর মুদ্রা এখম, সাখাৎ দেখায় ॥ তুমি..... আর ( অপর ) দেবের সেবা হতে, সংসার বাড়ায় । পাশ্বনাথ দর্শন হতে, মুক্তি পদ পায় । তুমি...... उपर्युक्त प्रमाणोंसे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये लोग ( सराक ) जैन सन्तान ही हैं । पर यह सब होते हुए भी सैकड़ों वर्षोंसे इनका ऐसे देश और जाति के साथ निवास करना कि जिसका जैन धर्म से सम्बन्ध छूटे, शताब्दियांकी शताब्दियां बीत गई और जहां हिंसा का साम्राज्य सा छाया हुआ है. जहां न साधु समागम ही रहा है. जहां उदर पूर्त्तिकी समस्या के सिवाय धर्मादि विषयों पर कोई चर्चा ही नहीं, वहां यदि ये अपने वास्तविक परिचयको भूलन लगें तो इसमें आश्चर्य ही क्या ? फिर भी यह जैन धर्मकी छाप का ही प्रभाव है कि आज भी ये लोग अपने कुलाचारको लिये हुए हैं। पर यदि हम लोग अब भी उस ओर से बिलकुल उदासीन ही रहें, उनकी ओर अपने कर्त्तव्यका कुछ भी खयाल न किया तो सम्भव है कि ये अपनी रही सही यादगारीको भी भूल जांय ।
लिखते बड़ा ही दुःख होता है कि जहां दुनिया की सारी जातियां अपने २ उत्थानके उद्योगमें तीव्र गतिसे काम कर रही हैं, वहां हमारा जैन समाज (जाति) कानमें तेल डाले प्रगाढ निद्रामें सोया हुआ है। अब भी समय है कि हम चेत जांय नहीं तो जैसे हम थोड़े