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(३) मानभूम जिलेके पाकवीर, पञ्चग्राम, वोरम, छरा, तेलकूपी और वेळोखा आदि ग्रामोंमें; बाकुड़ा जिलेके बहुलारा ग्राममें और वर्द्धमान जिलेके कटवा ताल्लुके के उज्जयिनी ग्राम के निकट जिन मूर्त्तियों का पाया जाना ।
( ४ ) वेलोजा ( कातरासगढ़ ) जैन मन्दिरों के एक शिला लेखमें- “चिचितागार आउर श्रावकी रक्षा वंशीपरा" का लिखा होना जिसका अर्थ यह है कि ये सब चैत्यागार एवं जिनमन्दिर श्रावक वंशजोंके तत्वावधान में रहे ।
(५) इन लोगोंका कट्टर निरामिष भोजी होना-यहां तक कि अनन्त काय - जमीकन्दादि फलों से परहेज करना । जिसके सम्बन्धमें एक कहावत भी प्रचलित है ।
'डोह डुमुर पोड़ा छाती, यह नहीं खाय सराक जाति' अर्थात् सराक लोग इन चीजोंको नहीं खाते ( जैनतर किसी भी जातिमें फल विशेष से परहेज नहीं पाया जाता )
(६) कहीं २ यहां तक पाया जाना कि उनके भोजन करते समय यदि कोई “काटो" शब्द का उच्चारण करले तो वे भोजन तक करना छोड़ देते हैं ।
( ७ ) इनका रात्रि भोजनको बुरा मानना । कई एक करते तक नहीं ।
(८) पुरी जिलेके सराकों की माघ सप्तमी के दिन खण्डगिरि की गुफाओंमें जाकर वहां की मूर्तियों के सन्मुख निम्न भजन का बोलना ।