________________
तेरापंथ-मत समीक्षा ।
५ोप नहा ।
है ? । जो लोग जिनमूर्तिके दर्शन नहीं करते हैं, वे भगवान्की आमाके विराधक हैं, ऐसा कहनेमें क्या किसी भी पकारकी अत्युक्ति कही जा सकती है ? ! कदापि नहीं।
प्रश्न-२३ समेगीजी साधुजी महाराज खुद ध्रवपूजा कीउ नहीं करते, जो ध्रवपूजामें धर्म हो तो साधुको अवस्य करणा चाईमैं साधुकू धर्मका काम करणेमें कोई दोस नहीं है, खास धर्मके वास्ते गर छोडते सो उनको तो हरवर्ग जीन प्रतिमाकी ध्रवपूजा वो भगतीमे रेणा चाय कीउके आप प्रतिमा पूजणेमे धर्म परूपते है।
उत्तर-बडे आश्चर्यकी बात है कि-प्रश्न पूछनेवालोंको यह भी समझमें नहीं आया की-द्रव्यपूजा करनेमें द्रव्यकी जरूरत होती है या नहीं। और जिसमें द्रव्यकी जरूरत रहती है, वह साधु कैसे कर सकता है ? फिर चाहे भले धर्मका ही हो । जिस कार्यमें द्रव्यकी आवश्यकता होती है, उस कार्यको साधु नहीं कर सकता। क्योंकि, साधुके पास द्रव्यका अभाव ही रहता है । इसके सिवाय द्रव्यपूजनके करने वालेको स्नानादि क्रिया करनेकी जरूरत भी रहती है । देखिये, भगवती सूत्रमें तुंगिया नगरीके श्रावक स्नान-पूजा करके भगवान्को वंदणा करनेके लिये गये हैं। वहाँ पूजाके समय स्नान क्रियाकी जरूरत पड़ी है। जब साधुको स्नान करनेका, पुष्पादिको छूनेक आधिकार ही नहीं है, तो फिर कैसे प्रभुकी द्रव्यपूजा कर सकते हैं ? । प्रभुकी पूजा में पुष्यादि सचित्त वस्तुओंका उपयोग करना पडता है । देखिये, महाकल्पसूत्रका वह पाठ, जो पहिले प्रश्रके उत्तरमें दे दिया है । व्रतधारी श्रावकोंने प्रभुकी पूजा करते हुए कैसी २ वस्तुएं चढ़ाई हैं ?-साधुओंका अधिकार वैसी वस्तुओंको