________________
तेरापंथ-मत समीक्षा। वंदणिज्जाओ, नमंसणिजाओ, पूअणिज्जाओ, सम्मापणिज्जायो, कल्लाणं मंगलं देवयं चेश्यं पज्जुवासणिजाओ, तए णं देवाणुप्पियाणं पुब्धि करणिज्जं तं एयणं देवाणुप्पिपाणं पच्छा करणिजं तं तएयं देवाणुप्पियाणं पुचि सेयं, तं एयणं देवाणुप्पियाणं पच्छासेयं, तं एयणं देवाणुप्पियाणं पुब्धि पच्छा वि हिआए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामित्र. त्ताए नविस्सइ । पृष्ठ १७१ से।
भावार्थ:-जिस समय सूर्याभदेव सूर्याभविमानमें उत्पन्न हुआ, उस समय उसको ऐसा विचार हुआ कि-मेरा पूर्व हित-पश्चात् हित तथा पूर्वपश्चात् हित क्या है ? इस प्रकार विचार करते हुए सूर्याभदेवको जान करके, उसके पास उसके सामानिक सभाके देवोंने आकरके सविनय इस प्रकार कहा:
'हे देवानुप्रिय ! सूर्याभविमानमें सिद्धायतनमें जिनोत्सेध प्रमाणमात्र १०८ जिन प्रतिमाएं हैं । तथा सुधर्मासभामें मानवत चैत्य-स्तंभमें वज्रमय गोलडब्बेमें जिनके अस्थि ( दाढावगैरह ) हैं, वे आपसे तथा दूसरे अनेक देव-देवियोंमे अर्चनीय, वंदनीय, नमस्यनीय, पूजनीय, सम्माननीय यावत् कल्याण-मंगल देव चैत्यकी तरह पर्युपासनीय हैं । तथा वे ही प्रतिमाएं एवं दाहाएं आपको परंपरासे पूर्वहितके लिये, पश्चात् हिनके लिये, सुख के लिये, क्षमाके लिये, मोक्षके लिये होंगी।'
उपर्युक्त पाठमें प्रत्यक्ष जिन प्रतिमा तथा दाढा ( भगवान्के अस्थि वगैरह ) अर्चनीय-पूजनीय-वंदनीय कहीं हैं। परन्तु