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तेरपंथ-मत समीक्षा ।
तो फेर समेगीजी साधुनी ग्रहस्ती पर बोज कीस शास्त्रकी रूसे
____ उत्तर-श्रीदशवकालिक सूत्रके सातवें अध्ययनकी ४७ वीं गाथामें जो बात कही है, वह सर्वथा मान्य है, फिर चाहे तेरापंथी हो, स्थानकवासी हो या संवेगीसाधु हो। जो साधु, गृहस्थ के शिरपर बोझा देता है, वह साधुकी क्रियामें दोष लगाता है । संवेगी साधु, अपने उपकरण गृहस्थके शिर. पर देते नहीं है । और कदाचित् कोई शिथिल साधु देता हो, तो इससे सबके शिरपर दोष लगाना, द्वेषका ही कारण है । देखिये, जो रुपया जितना घिपा हुआ होता है, उसका उतना ही बटाव लगता है। परन्तु बह रुपया सर्वथा तांत्रिका नहीं गिना जाता है। इसी तरह जिसमें जितनी न्यूनता होती है, उसमें उननी ही न्यूनता गिनी जाती है कंचन कामिनीका सेवन करनेवाला साधु भावसे विमुख होता है। महानुभाव ! आप लोगोंने संवेगी साधुका नाम ले करके निंदाका कार्य किया है । इस लिये पापका पश्चात्ताप करना। स्थूलदृष्टिसे न देख करके, सूक्ष्मदृष्टिसे देखोगे तो, तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हारे साधुओंकी उत्कृष्टता सम्हालनेके लिये कैसे २ प्रपंचोको उठाते हो ? बस, यही तुम्हारे गुरुओंकी शिक्षाका फल है।
प्रश्न-२२ सूर्याभदेवता जिन पतिमा मोक्षने अर्थ पूजी, आप केते हो, ओर रायपसेणीका पाठ बतलाने हो सोइणरो उत्तर अवलतो ओहेके देवतांरा केण.सु पूजी हे ओर भवनी परमपराने अर्थे पूनी, दूसरो बतीसवानाभी पूनीया है, हरेक देवता भीमाणसे अदपती हुवे तीको उपजती वेला पूनीया